न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अगुवाई वाली सर्वोच्च न्यायालय की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने रजिस्ट्री अधिकारियों से स्पष्टीकरण के लिए बुलाया कि सितंबर, 2019 में आदेश के अनुसार अग्रिम जमानत याचिका को चार सप्ताह के भीतर सूचीबद्ध नहीं किया गया था।
याचिकाकर्ता-महताब आलम पर 50 लाख की अग्रिम रसीद के बदले जमीन की बिक्री जिसमे 15 लाख का नकद लेनदेन और शेष 35 लाख रुपये बैंक लेनदेन से संबंधित धोखाधड़ी करने से इंकार करने का आरोप है।
इस मामले पर पहली बार 19 सितंबर, 2019 को सुनवाई हुई और नोटिस जारी किया गया। हालाँकि पीठ ने मामले को चार सप्ताह के भीतर सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया था, लेकिन लगभग एक साल बाद 28 अगस्त को सुनवाई के लिए मामला आया।
हम हालांकि इस तथ्य से परेशान हैं कि 19 सितंबर, 2019 को नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह मे वापसी के आदेश दिये थे। मामला अग्रिम जमानत का था। यह पहली बार है जब मामला लगभग एक साल बाद सूचीबद्ध किया गया।सूप्रीम कोर्ट आदेश
याचिकाकर्ता को पटना उच्च न्यायालय द्वारा अन्तरिम जमानत पर रिहा कर दिया गया था और 50 लाख रुपये की पूरी राशि प्राप्त होने के बाद अन्तरिम जमानत की पुष्टि की जानी थी।
उच्च न्यायालय के इस आदेश को एसएलपी के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी थी जिसमें 19 सितंबर, 2019 को एक आदेश पारित किया गया था, जिसमे 4 सप्ताह मे वापसी के साथ नोटिस जारी किए गए थे।
इस बीच याचिकाकर्ता को गिरफ्तार कर लिया गया और बाद में नियमित जमानत पर रिहा कर दिया गया। इस आधार पर, सुप्रीम कोर्ट ने आज अग्रिम जमानत के मामले को प्रभावहीन होने की वजह से निस्तारित कर दिया।
जस्टिस कौल, अजय रस्तोगी और अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने अब रजिस्ट्री से स्पष्टीकरण मांगा है "प्रशासनिक की तरफ से क्यों मामले को चार सप्ताह के बाद सूचीबद्ध नहीं किया गया जबकि मामला अग्रिम जमानत का था"
रजिस्ट्री को दो सप्ताह के भीतर स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है।
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