सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (एनएलएसआईयू) बैंगलोर के कर्नाटक में अधिवासित छात्रों के लिए अपनी 25% सीटों को क्षैतिज रूप से आरक्षित करने के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। (कर्नाटक राज्य बनाम मास्टर बालचंदर कृष्णन)।
जस्टिस एल नागेश्वर राव और रवींद्र भट की बेंच कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने विश्वविद्यालय में शुरू किए गए 25% अधिवास आरक्षण को रद्द कर दिया था।
इस सप्ताह के शुरु में, विश्वविद्यालय ने घोषणा की थी कि वह शैक्षणिक वर्ष 2021-22 से अधिवास आरक्षण को इस वर्ष अप्रैल / मई में अनुमोदित अपनी समावेशन और विस्तार योजना के हिस्से के रूप में लागू करेगा।
आज अदालत के समक्ष याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने आरक्षण नीति को प्रभावी करने वाली एनएलएसआईयू अधिसूचना पर रोक लगाने की मांग की।
हालांकि कोर्ट ने इस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
एनएलएसआईयू की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता साजन पूवैया पेश हुए।
पिछले साल सितंबर में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (NLSIU) संशोधन अधिनियम, 2020 को रद्द कर दिया, जिसके द्वारा राज्य में अधिवासित छात्रों के लिए विश्वविद्यालय में 25% आरक्षण की शुरुआत की गई थी।
बेंच ने माना कि एनएलएसआईयू संशोधन अधिनियम अल्ट्रा वायर्स था और मूल एनएलएसआईयू अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत था, और राज्य सरकार के पास विश्वविद्यालय में अधिवास आरक्षण शुरू करने की शक्ति नहीं थी।
इसने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक अपील को प्रेरित किया, जिसमें राज्य सरकार ने दावा किया कि उच्च न्यायालय ने यह देखने में गलती की कि एनएलएसआईयू एक राज्य संस्था नहीं है और यह राज्य के नियंत्रण में नहीं है।
दो न्यायाधीशों - न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर - ने पहले मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था।
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