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उच्चतम न्यायालय का कोविड-19 मरीजो के लिये आईसीयू के 80% बेड आरक्षित रखने की दिल्ली सरकार की योजना पर लगी रोक हटाने से इंकार

दो न्यायाधीशों की पीठ ने टिप्पणी की कि चूंकि यह मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित है, उचित होगा कि वही इसकी सुनवाई करे

Bar & Bench

उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 करीजों के लिये राजधानी के निजी अस्पतालों में 80 फीसदी आईसीयू बेड आरक्षित रखने की दिल्ली सरकार की योजना पर लगी रोक हटाने से मंगलवार को इंकार कर दिया।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति बीआर गवई की दो सदस्यीय पीठ ने आम आदमी पार्टी सरकार को निर्दश दिया कि उसे अपने फैसले पर लगी रोक हटवाने के लिये दिल्ली उच्च न्यायालय ही जाना चाहिए जहां मामला लंबित है।

शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही उच्च न्यायालय से कहा कि वह मामले में 12 नवंबर को सुनवाई करे। इससे पहले, दिल्ली सरकार की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल संजय जैन ने पीठ से कहा कि दिन प्रतिदिन राजधानी में कोविड-19 की स्थिति ख्रराब हो रही है।

पीठ ने अपने आदेश में कहा,

‘‘यह मामला दिल्ली उच्च न्यायालय की संबंधित पीठ के समक्ष परसों सूचीबद्ध किया जाये। इस आदेश को न्यायालय में पेश किया जाये ताकि इस मामले को एक दिन बाद सूचीबद्ध करने के लिये निर्देश जाये। पक्षकार एलपीए न्यायालय के समक्ष उन्हें दी गयी सलाहन के अनुसार प्लीडिग के लिये स्वतंत्र होंगे।’’

अधिवक्ता चिराग एम श्राफ के माध्यम से यह अपील उच्च न्यायालय की एकल पीठ के 22 सितंबर के आदेश के खिलाफ दायर की गयी थी जिसमे कोविड-19 के मरीजों के लिये निजी अस्पतालों में आईसीयू के 80 फीसदी बेड आरक्षित रखने का दिल्ली सरकार के फैसले पर रोक लगा दी गयी थी। न्यायमूर्ति नवीन चावला ने यह आदेश दिया था। इस फैसले के खिलाफ दायर अपील उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने रोक हटाये बगैर ही इस मामले को 27 नवंबर के लिये सूचीबद्ध कर दिया है।

दिल्ली सरकार ने अपनी में कहा कि उच्च न्यायालय इस तथ्य पर विचार करने में विफल रहा कि राजधानी में करीब 1170 निजी नर्सिंग होम और अस्पतालों से सिर्फ 33 निजी नर्सिंग होम और अस्पतालों को ही अपने यहां आईसीयू के 80 फीसदी बेड कोविड-19 के मरीजों के लिये आरक्षित रखने का फैसला किया गया है।

हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने इस तथ्य का जिक्र किया कि दिल्ली सरकार के अनुरोध पर ही खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई स्थगित की थी और अब इस पर पहले सुनवाई के लिये कोई भी अनुरोध उसी संबंधित न्यायालय से किया जा सकता था।

इस पर एएसजी संजय जैन ने कहा कि उच्च न्यायालय में पेश हो रहे वकील के साथ कुछ स्वास्थ संबंधी परेशानी हो गयी है।

न्यायमूर्ति बीआर गवई ने जैन से सवाल किया कि यह दर्शाने वाली ऐसी कोई सामग्री रिकार्ड पर पेश क्यों नहीं की गयी कि कोविड-19 मरीजों के लिये कोई बिस्तर उपलब्ध नहीं है।

जैन ने कहा कि दीवाली के मौसम और पर्यावरण की वजह से रोजाना कोविड मामलों में तेजी से वृद्धि होगी।

‘‘बड़ी संख्या में लोग राज्य के बाहर से आते हैं और निजी अस्पतालों में इलाज कराते हैं और आईसीयू बेड का इस्तेमाल करते हैं। विशेषज्ञ समिति ने सुझाव दिया था कि दिल्ली को आईसीयू के 6,000 बेड की आवश्यकता है और हमारे पास 3,500 बेड ही हैं। अगर इस अधिसूचना को हटा दें तो 300 से 500 बेड और हो सकते थे। ’’
संजय जैन ने कहा

हालांकि, पीठ इससे प्रभावित नहीं हुयी और उसने कहा कि इस बारे मे दिल्ली उच्च न्यायालय को ही सुनवाई करके इसका निस्तारण करना होगा।

दिल्ली सरकार ने अपनी याचिका में कहा था कि इन 33 निजी अस्पतालों में से किसी को भी अस्पताल में बेड आरक्षित रखने के सरकार के आदेश पर कोई आपत्ति नही है।

दिल्ली सरकार ने यह भी कहा कि एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स (दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिकाकर्ता) का यह दावा कि इससे गैर कोविड-19 मरीज प्रभावित होंगे, निजी अस्पतालों के व्यापारिक हितों के अलावा और कुछ नहीं है क्योंकि उन्हें कोविड-19 के मरीजों के इलाज के लिये सिर्फ निर्धारित शुल्क ही लेने का निर्देश दिया गया है।

याचिका में दावा किया गया है कि सरकार के आदेश पर रोक की वजह से पहले से इन अस्पतालों में भर्ती कोविड-19 के मरीजों को आईसीयू में अपने शेष इलाज के लिये गैर कोविड मरीजों को उपचार की दर से मनमाना पैसा देने के लिये बाध्य किया जायेगा ।

सरकार ने यह भी कहा कि वैसे भी सरकार के नीतिगत मामलो , विशेषकर जनहित में लिये गये नीतिगत फैसले, में अदालतें हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं।

प्रतिवादियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनिन्दर सिंह ने दलील दी कि उच्च न्यायालय काम कर रहा है और अगर वह सुनवाई की तारीख निर्धारित करता है तो उस पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।

उच्चतम न्यायालय ने इसलिए निर्देश दिया कि यह मामला एक दिन बाद उच्च न्यायालय की संबंधित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाये।

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