केन्द्र सरकार ने आज दिल्ली उच्च न्यायालय को सूचित किया कि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो द्वारा तैयार की जाने वाली कारागार आंकड़ों की रिपोर्ट में ट्रांसजैंडर के लिये एक अलग लैंगिक श्रेणी जोड़ी जायेगी।
मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ के समक्ष केन्द्र की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल चेतन शर्मा ने इस बारे में एक वक्तव्य दिया।
न्यायालय करण त्रिपाठी की उस जनहित याचिका की सुनवाई कर रहा था जिसमे एनसीआरबी की रिपोर्ट ट्रांसजैंडर कैदियों को एक अलग श्रेणी में रखने का अनुरोध किया गया है।
एएसजी शर्मा ने कहा कि एनसीआरबी ने एक पत्र लिखकर सूचित किया है कि वह अपनी रिपोर्ट भारत में जेल के आंकड़े - 2020 के बाद कैदियों को पुरूष, महिला और ट्रांसजैन्डर श्रेणी में वर्गीकृत किया जायेगा।
एनसीआरबी ने कहा है कि अधिकारियाें को इसी के अनुसार आंकड़े एकत्र करने का निर्देश दिया गया है।
केन्द्र के इस वक्तव्य के मद्देनजर न्यायालय ने जनहित याचिका का निस्तारण कर दिया।
न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई की पिछली तारीख पर केन्द्र सरकार को इस बारे में याचिकाकर्ता के लंबित प्रतिवेदन पर आवश्यक निर्देश प्राप्त करने के लिये कहा था।
न्यायालय ने कहा था कि पहली नजर में याचिकाकर्ता का अनुरोध उचित और तर्कसंगत है।
याचिकाकर्ता की दलील थी कि संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 में प्रदत्त समता और संरक्षण सुनिश्चित करने के लिये जरूरी है कि जेल के आंकड़ों में ट्रांसजेन्डर को एक अलग लिंग के रूप मे वर्गीकृत किया जाये।
याचिकाकर्ता ने अपनी दलील के समर्थन में नालसा बनाम भारत संघ प्रकरण में उच्चतम न्यायालय के फैसले को आधार बनाते हुये दलील दी थी कि ट्रांसजेन्डर कैदियों को अलग से मान्यता दिये बगैर शीर्ष अदालत द्वारा उनके अधिकारों के बारे में दिये गये दिशा निर्देशों का लागू नहीं किया जा सकता है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता अखिल हसीजा पेश हुये । यह याचिका एलायंस लॉ ग्रुप के अधिवक्ता यश मिश्रा, अखिल हसीजा और मान्या चंदो के माध्यम से दायर की गयी थी।
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