दिल्ली उच्च न्यायालय की पहली नजर में राय है कि तीन तलाक को शून्य और अवैध घोषित किये जाने का मतलब यह नहीं है कानून इस कुप्रथा को जारी रखने को अपराध नही बना सकता था।
न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर की पीठ ने इस बारे में एक आदेश पारित किया है।
न्यायालय उस याचिका पर विचार कर रहा था जिसमे मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 की धारा 4 को प्रारंभ से ही अमान्य, असंवैधानिक, पक्षपातपूर्ण और याचिकाकर्ता सहित मुस्लिम आदमियों के मौलिक अधिकारों का हनन करने वाली घोषित करने का अनुरोध किया गया है।
यह धारा मुस्लिम पति द्वारा तीन बार तलाक कहे जाने के कृत्यु को अपराध घोषित करती है।
याचिकाकर्ता ने इस याचिका के लंबित होने के दौरान धारा 4 के तहत कथित अपराध में दिल्ली के पुलिस आयुक्त को प्राथमिकी दर्ज नहीं करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है।
याचिकाकर्ता के वकील की दलील थी कि जब एक बार तीन तलाक को शून्य और अवैध बना दिया है तो फिर तीन तलाक देने को अपराध बनाना न्यायोचित नहीं है।
उन्होंने यह भी दलील दी कि चूंकि तीन तलाक का मुस्लिम विवाह की स्थिति या किसी अन्य प्रकार का कोई असर नहीं होगा, इसलिये इस कृत्य के लिये दंडित करने की कोई वजह नहीं है।
न्यायालय ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुये कि यह जनहित याचिका जैसी नहीं है, इस समय धारा 4 से संबंधित सभी मामलों के संबंध में किसी प्रकारकी राहत देने से इंकार कर दिया।
न्यायालय ने यह भी कहा कि चूंकि यह मामला शीर्ष अदालत के पास विचाराधीन है, इसलिए वह इसमें आगे कार्यवाही करने से पहले उसके फैसले की प्रतीक्षा करेगा।
बहरहाल, न्यायालय ने यह टिप्पणी की कि इस कानून को उस समय तक वैध माना जायेगा जब तक समक्ष न्यायालय इसे अवैध या असंवैधानिक घोषित नहीं कर देता है।
न्यायालय ने कहा कि पहली नजर में ऐसा लगता है कि धारा 4 का उद्देश्य मुस्लिम पति द्वारा अपनी पत्नी को तलाक देने के लिये तलाक-ए-बिद्दत अर्थात तीन तलाक की पुरानी परंपरा के प्रति हतोत्साहित करना है।
इस परंपरा के लिये हतोत्साहित करने के उद्देश्य से ही धारा 4 में प्रावधान किया गया है। सिर्फ इसलिए कि तीन तलाक को शून्य और अवैध घोषित कर दिया गया है तो इसका मतलब यह नहीं है यह कानून इस कुप्रथा को जारी रखने को अपराध नही बना सकता था। यह पहली नजर में हमारी राय है।न्यायालय ने कहा
याचिकाकर्ता ने संविधान के अनुच्छेद 145 (3) से समानता करते हुये न्यायालय से यह भी अनुरोध किया कि चूंकि इस मामले में महत्वपूर्ण कानूनी सवाल निहित है, इसलिए इसे वृहद पीठ को सौंप दिया जाना चाहिए।
‘‘हम इस अनुरोध को अस्वीकार करते हैं। यह सही है कि संविधान या किसी अन्य कानून का कोई प्रावधान हमारे संज्ञान में नहीं लाया गया है जिसके आलोक में इस मामले को अभी वृहद पीठ को सौंपने की जरूरत हो। मुख्य न्यायाधीश द्वारा निर्धारित रोस्टर के अनुसार यह याचिका हमारे सामने उन प्रावधानों की विवेचना के लिये पेश की गयी है जिन्हें चुनौती दी गयी है। इस संबंध में दिल्ली उच्च न्यायालय के नियमों को आधार बनाना पूरी तरह से गलत है।"
न्यायालय ने याचिका पर सुनवाई अनिश्चित काल के लिये स्थगित करते हुये पक्षकारों को उच्चतम न्यायलाय का फैसला आने पर आवेदन करने की छूट प्रदान की।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता तरूण चंडियोक और नसीम अहमद उपस्थित हुये
केन्द्र की ओर से स्थाई अधिवक्ता कीर्तिमान सिंह अधिवक्ता सहज गर्ग और अमित गुप्ता के साथ उपस्थित हुये जबकि दिल्ली सरकार की ओर से स्थाई अधिवक्ता राहुल मेहरा अधिवक्ता चैतन्य गोसांई के साथ उपस्थित हुये।
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