Uttar Pradesh Chief Minister Yogi AdityanathTOI 
वादकरण

धर्म परिवर्तन और अंतर-धर्म विवाह के बारे में उप्र सरकार के अध्यादेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती

याचिका में तर्क दिया गया है कि उप्र का धर्म परिवर्तन और अंतर-धर्म विवाह पर लाया गया अध्यादेश शरारती तत्वों के लिये किसी को भी झूठे मामले में फंसाने का हथियार बन सकता है।

Bar & Bench

उप्र विधि विरूद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020 की संवैधानिक वैधता को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गयी है। न्यायालय में दायर याचिका में दलील दी गयी है कि धर्म परिवर्तन और अंतर-धर्म विवाहों के बारे में उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल द्वारा लागू अध्यादेश का दुरूपयोग लोगों को झूठे मामले में फंसाने के लिये होगा और इससे अराजकता तथा भय का माहौल पैदा होगा।

यह याचिका दो अधिवक्ताओं विशाल ठाकरे और अभय सिंह और कानून के शोधार्थी प्रणेश ने दायर की है। याचिका में दलील दी गयी है कि यह अध्यादेश लोक नीति और नागरिकों के मौलिक अधिकारों के खिलाफ है।

याचिका में कहा गया है,

‘‘यह अध्यादेश किसी भी व्यक्ति को झूठे मामले में फंसाने का समाज के शरारती तत्वों के हाथ में एक हथियार बन सकता है और (अध्यादेश में परिकल्पित) ऐसे किसी भी कृत्य में शामिल नही होने वाले व्यक्तियों को झूठे मामले में फंसाये जाने की संभावना है और इसकी परिणति घोर अन्याय के रूप में होगी।’’

उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्रिमंडल ने नवंबर में विवादास्पद अध्यादेश ‘उप्र विधि विरूद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020’ को मंजूरी दी थी।

अधिवक्ता संजीव मल्होत्रा द्वारा इस याचिका में कहा गया है कि संविधान निर्माता चाहते थे कि यह अंगीकार करने योग्य दस्तावेज हो न कि शासन करने के लिये सख्त रूपरेखा।

याचिका में कहा गया है कि वे इसे एक लचीले दस्तावेज के रूप में चाहते थे जिसे बदलते परिवेश के अनुसार अपनाया जा सके।

याचिका में आगे कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 254 के अनुसार राज्यों के लिये केन्द्र को कानून बनाने का अधिकार है और अगर संसद और राज्य के विधान मंडलों द्वाराबनाये गये कानूनों में तारतम्यता नहीं हो तो ऐसी स्थिति में केन्द्र द्वारा बनाया गया कानून प्रभावी होगा।

अध्यादेश में किसी भी व्यक्ति के लिये धर्मान्तरण के बारे में विस्तृत प्रक्रिया प्रतिपादित की गयी है। इस प्रक्रिया का उल्लंघन करने पर धर्मान्तरण करने और धर्मान्तरण कराने वाले व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई का प्रावधान किया गया है।

अध्यादेश में यह भी कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति मिथ्या, निरूपण,बलपूर्वक, असम्यक, प्रभाव, प्रलोभन या अन्य किसी कपट रीति से या विवाह के लिये किसी दूसरे व्यक्ति को एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तन नहीं करायेगा और न ही इसका प्रयास करेगा और न ही किसी को ऐसे धर्मान्तरण के लिये प्रेरित करेगा और न ही इसकी साजिश करेगा।

याचिकाकर्ताओं ने उप्र के अध्यादेश के साथ ही उत्तराखंड सरकार द्वारा 2018 में बनाये गये इसी तरह के उत्तराखंड धार्मिक स्वतंत्रता कानून, 2018 की वैधता को भी चुनौती दी है।

और अधिक पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें

Uttar Pradesh ordinance on religious conversion, inter-faith marriage challenged before Supreme Court