भाजपा नेता प्रद्युमन सिंह तोमर ने मप्र उच्च न्यायालय के 20 अक्टूबर के आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है। उच्च न्यायालय ने इस आदेश में निर्देश दिया था कि राजनीतिक दल वास्तविक जनसभाओं की बजाये आभासी तरीके से चुनाव प्रचार करेंगे।
ग्वालियर से उपचुनाव लड़ रहे तोमर ने इस आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध करते हुये अपनी याचिका में कहा है कि यह निर्वाचन आयोग द्वारा दी गयी अनुमति के अनुसार वास्तविक सभा के माध्यम से चुनाव प्रचार करने के उनके अधिकार का हनन करता है।
उच्च न्यायालय ने विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा आयोजित की जा रही सभाओं की वजह से कोविड-19 संक्रमण के मामलों में वृद्धि के तथ्य को उजागर करने वाली जनहित याचिका पर आदेश पारित किया था। इस याचिका में दलील दी गयी थी कि राज्य के प्राधिकारी ऐसे राजनीतिक दलों और उनके नेताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।
इस आदेश में उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि राजनीतिक दल वास्तविक जनसभाओं की बजाये आभासी तरीके से चुनाव प्रचार करेंगे। न्यायालय ने सभी जिलाधिकारियों को उस समय तक ऐसी सभाओं की अनुमति देने से रोक दिया था जब तक यह साबित नहीं हो जाये कि आभासी तरीके से चुनाव प्रचार संभव नहीं है।
उच्च न्यायालय ने साथ ही यह निर्देश भी दिया था कि जिलाधिकारी द्वारा वास्तविक जनसभा के आयोजन की अनुमति निर्वाचन आयोग द्वारा लिखित में मंजूरी दिये जाने पर ही प्रभावी होगी।
इस आदेश में ऐसी सभा के लिये राजनीतिक दलों को इसमें शामिल होने वाले लोगों की सुरक्षा के लिये उनकी अपेक्षित संख्या से दुगुने मास्क और सैनिटाइजर खरीदने के लिये पर्याप्त धन जिलाधिकारी के पास जमा करान की भी शर्त थी।
अधिवक्ता आस्था शर्मा के माध्यम से दायर इस एसएलपी में तोमर ने कहा है कि उच्च न्यायालय का आदेश निर्वाचन आयोग, केन्द्र सरकार और मध्य प्रदेश सरकार के आदेशों की पूरी तरह उपेक्षा है।
याचिका में कहा गया है, ‘‘जनसभाओं के लिये अनुमति देने से जिलाधिकारियों को रोकने और दुगुने मास्क और सैनिटाइजर के लिये धन जमा कराने की शर्त पूरी तरह से उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।’’
इसमें आगे कहा गया है,
‘‘उच्च न्यायालय को निर्वाचन आयोग, केन्द्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा जारी दिशा निर्देशों को बदलने का कोई अधिकार नही है। उच्चतम न्यायालय की मोहिन्दर सिंह गिल बनाम मुख्य निर्वाचन आयुक्त प्रकरण में दी गयी व्यवस्था के अनुसार चुनावों के आयोजन की निगरानी करना, निर्देश देना और उन पर नियंत्रण पूरी तरह से निर्वाचन आयोग के अधिकार क्षेत्र में है और उच्च न्यायालय इसमें बदलाव नहीं कर सकता।’’सुप्रीम कोर्ट में दायर एस.एल.पी.
इस मामले की उत्पत्ति निर्वाचन आयोग द्वारा 23 सितंबर को जारी प्रेस विज्ञप्ति से होती है जिसमें मध्य प्रदेश विधान सभा की 28 सीटों सहित विभिन्न राज्यों में रिक्त स्थानों के लिये उप चुनाव कराने की घोषणा की गयी थी।
इस प्रेस विज्ञप्ति के उपबंध 5 में निर्वाचन आयोग ने संविधान के अनुच्छेद 324 में प्रदत्त अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुये कोविड-19 के दिशा निर्देश तैयार किये जिनका इन उपचुनावों के दौरान पालन होना था।
दिशानिर्देशों के उपबंध 13 (3) में निर्वाचन आयोग ने स्पष्ट रूप से कोविड-19 दिशा निर्देशों का पालन करते हुये ‘जनसभाओं’ और ‘चुनावी रैलियों’ के आयोजन की अनुमति प्रदान की है।
इसके बाद, 8 अक्टूबर को केन्द्र ने निर्दिष्ट शर्तो के साथ उन विधान सभा क्षेत्रों में 100 व्यक्तियों की वर्तमान सीमा से ज्यादा व्यक्तियों के एकत्र होने की अनुमति प्रदान की जहां चुनाव हो रहे है। यह भी निर्देश दिया गया था कि संबंधित राज्य सरकारें विस्तृत स्टैंडर्ड आपरेटिंग प्रसीजर जारी करेंगी।
इसके बाद, राज्य सरकार ने कुछ प्रतिबंधों के साथ जन सभाओं की अनुमति दी। याचिका में कहा गया है कि जब भी कोविड-19 के मानदंडों का उल्लंघन हुआ तो राज्य प्रशासन ने कानून के मुताबिक कार्रवाई की और उल्लंघन करने वालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की।
इसी आधार पर याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील करने की अनुमति मांगी है और अंतरिम राहत के रूप में उच्च न्यायालय के 20 अक्टूबर के आदेश और उसके समक्ष लंबित कार्यवाही पर रोक लगाने का अनुरोध किया है।
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में दतिया और ग्वालियर के जिलाधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया था कि चुनाव प्रचार के दौरान कोविड-19 के मानदंडों के कथित उल्लंघन के मामले में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ और केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज हों।
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