Haq and MP High Court Indore bench  
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मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने 'हक' फिल्म के खिलाफ शाह बानो बेगम की बेटी की याचिका खारिज कर दी

यह फिल्म शाह बानो द्वारा दायर एक केस से प्रेरित है, जिसके कारण सुप्रीम कोर्ट ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को मेंटेनेंस देने के पक्ष में फैसला सुनाया था।

Bar & Bench

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 'हक' फिल्म की रिलीज़ रोकने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। यह फिल्म शाह बानो केस से प्रेरित है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को गुज़ारा भत्ता देने के पक्ष में फैसला सुनाया था [सिद्दीका बेगम खान बनाम यूनियन ऑफ इंडिया]।

इमरान हाशमी और यामी गौतम स्टारर यह फिल्म 7 नवंबर को रिलीज़ होने वाली है।

फिल्म के खिलाफ याचिका शाह बानो बेगम की बेटी सिद्दीका बेगम खान ने दायर की थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि फिल्म में शाह बानो की ज़िंदगी की पर्सनल घटनाओं को गलत तरीके से दिखाया गया है।

उन्होंने तर्क दिया कि फिल्म बनाने वाले बानो के परिवार या उनके कानूनी वारिसों की सहमति लिए बिना ऐसी फिल्म नहीं बना सकते थे, जिसमें ऐसी पर्सनल घटनाओं को दिखाया गया हो।

सिद्दीका ने कहा कि फिल्म उनके कानूनी वारिसों की सहमति लिए बिना उनकी मरी हुई मां की प्राइवेसी और पर्सनैलिटी का कमर्शियल फायदा उठा रही है। उन्होंने आगे कहा कि बानो की मौत के बाद उन्हें अपनी दिवंगत मां के मान-सम्मान के अधिकार विरासत में मिले हैं।

हाईकोर्ट की इंदौर बेंच के जस्टिस प्रणय वर्मा ने इन तर्कों को खारिज करते हुए कहा,

“किसी व्यक्ति द्वारा अपने जीवनकाल में कमाई गई प्राइवेसी या मान-सम्मान उसकी मृत्यु के साथ ही खत्म हो जाता है। इसे चल या अचल संपत्ति की तरह विरासत में नहीं लिया जा सकता।”

कोर्ट ने फिल्म बनाने वालों की इस बात को भी माना कि फिल्म सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के केस से प्रेरित है, लेकिन बाकी सब काल्पनिक है और इस बारे में एक डिस्क्लेमर भी फिल्म का हिस्सा है।

कोर्ट ने कहा, "चूंकि डिस्क्लेमर में ही कहा गया है कि यह एक ड्रामा है और काल्पनिक है और एक किताब का रूपांतरण है और सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से प्रेरित है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि फिल्म का कंटेंट मनगढ़ंत है। चूंकि फिल्म एक प्रेरणा और एक फिक्शन है, इसलिए कुछ हद तक छूट निश्चित रूप से दी जा सकती है और सिर्फ इसलिए कि ऐसा किया गया है, यह नहीं कहा जा सकता कि कोई सनसनीखेज या गलत चित्रण किया गया है।"

Justice Pranay Verma

कोर्ट ने अपने फाइनल फैसले में यह भी कहा कि यह फिल्म ज़्यादातर पब्लिक में मौजूद कोर्ट रिकॉर्ड से प्रेरित बताई जाती है।

कोर्ट ने कहा, "एक बार जब कोई मामला पब्लिक रिकॉर्ड का हिस्सा बन जाता है, तो प्राइवेसी का अधिकार खत्म हो जाता है और यह प्रेस और मीडिया के साथ-साथ दूसरों के लिए भी कमेंट करने का एक सही विषय बन जाता है। मौजूदा मामले में भी ठीक यही स्थिति है।"

कोर्ट ने फिल्म बनाने वालों की इस दलील को भी मान लिया कि याचिकाकर्ता के पास इस मामले में एक और रास्ता था - सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) द्वारा दिए गए सेंसर सर्टिफिकेट को रद्द करने या सस्पेंड करने के लिए सीधे कोर्ट आने के बजाय केंद्र सरकार से संपर्क करना।

इसके अलावा, कोर्ट ने याचिकाकर्ता को अपनी कानूनी चुनौती में देरी करने के लिए भी गलत ठहराया।

कोर्ट ने याचिका खारिज करने से पहले कहा, "याचिकाकर्ता ने तुरंत कार्रवाई नहीं की, बल्कि 01.11.2025 को यह याचिका दायर की, यानी फिल्म की रिलीज़ से एक हफ्ते से भी कम समय पहले और वह भी सर्टिफिकेट मिलने के बाद... कम से कम एक महीने पहले, याचिकाकर्ता के पास इस कोर्ट में आने का कारण बन गया था, लेकिन उसने यह याचिका दायर करने के लिए काफी समय तक इंतज़ार किया। इसलिए उसका व्यवहार एक सतर्क मुवक्किल जैसा नहीं है।"

शाह बानो की बेटी की तरफ से एडवोकेट तौसीफ वारसी पेश हुए।

भारत सरकार की तरफ से भारत के डिप्टी सॉलिसिटर जनरल रोमेश दवे पेश हुए।

इंसोम्निया फिल्म्स (एक प्रोड्यूसर) की तरफ से एडवोकेट एचवाई मेहता, चिन्मय मेहता और चंद्रजीत दास पेश हुए, जिन्हें परिणाम लॉ एसोसिएट्स ने ब्रीफ किया था।

जंगली पिक्चर्स की तरफ से सीनियर एडवोकेट अजय बगड़िया और एडवोकेट रितिक गुप्ता के साथ एडवोकेट जसमीत कौर पेश हुईं, जिन्हें आनंद नाइक एंड कंपनी ने ब्रीफ किया था।

[फैसला पढ़ें]

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Madhya Pradesh High Court dismisses plea by Shah Bano Begum’s daughter against ‘Haq’ movie