सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुझाव दिया कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) को 2010 के बाद पंजीकृत वकीलों के लिए यह अनिवार्य कर देना चाहिए कि वे अपने वकालतनामे में स्पष्ट रूप से उल्लेख करें कि उन्होंने अखिल भारतीय बार परीक्षा (एआईबीई) उत्तीर्ण की है या नहीं।
वर्ष 2010 में AIBE का आयोजन पहली बार किया गया था।
यह सुझाव भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति पीवी संजय कुमार तथा न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने कानूनी शिक्षा और नामांकन के लिए विनियामक उपायों से संबंधित एक आवेदन पर सुनवाई करते हुए दिया।
सुनवाई के दौरान सीजेआई खन्ना ने कहा कि इस तरह के नियम से न केवल पारदर्शिता बढ़ेगी बल्कि अधिवक्ता अधिनियम के तहत विनियामक अनुपालन भी मजबूत होगा।
मुख्य न्यायाधीश ने पूछा, "आप वकालतनामा में ही यह उल्लेख करना अनिवार्य क्यों नहीं करते कि क्या AIBE पास हुआ है? ऐसा नियम क्यों नहीं बनाते कि हर वकालतनामा में नामांकन संख्या का उल्लेख हो और अगर नामांकन 2010 के बाद का है, तो यह उल्लेख किया जाए कि AIBE पास हुआ है...आप BCI हैं। आप पूरी तरह से सच्चे हैं। अगर कोई ऐसा नहीं करता है, तो यह अधिवक्ता अधिनियम के तहत कदाचार होगा।"
न्यायालय अगस्त 2023 के संविधान पीठ के फैसले के आलोक में मामले की सुनवाई कर रहा था, जिसमें यह शर्त बरकरार रखी गई थी कि कोई भी विधि स्नातक तब तक कानून का अभ्यास नहीं कर सकता जब तक कि उसने AIBE पास न कर लिया हो। उस फैसले में यह भी स्पष्ट किया गया था कि अंतिम वर्ष के विधि छात्रों को परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जा सकती है, जिसे BCI ने बाद की अधिसूचनाओं में लागू किया।
आज की सुनवाई में नामांकन शुल्क का मुद्दा भी उठा। पीठ ने BCI से कहा कि वह इस बारे में स्पष्ट रुख अपनाए कि क्या वह विधि महाविद्यालयों और विधि छात्रों से ली जाने वाली फीस के सवाल पर 2023 के फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिका दायर करने का इरादा रखता है।
अब मामला BCI द्वारा अपनी स्थिति स्पष्ट करने के बाद आगे बढ़ेगा।
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Make it mandatory to mention AIBE status in vakalatnama: Supreme Court urges BCI