बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने हाल ही में कहा था कि केवल इसलिए कि एक गांव के सरपंच ने अपने वैधानिक कर्तव्यों का पालन नहीं किया है, उसे पद से अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है। [मनोहर ज्ञानेश्वर पोटे बनाम कलेक्टर, जालना]।
एकल-न्यायाधीश न्यायमूर्ति अरुण पेडनेकर ने एक मनोहर ज्ञानेश्वर पोटे को राहत दी, जिसे कलेक्टर ने 8 सितंबर, 2022 को इस आधार पर पारित एक आदेश द्वारा अयोग्य घोषित कर दिया था कि वह महाराष्ट्र ग्राम पंचायत अधिनियम, 1958 के तहत अनिवार्य रूप से एक वित्तीय वर्ष में चार बैठकें आयोजित करने में विफल रहे।
न्यायाधीश ने कहा, "वैधानिक कर्तव्य का गैर-निष्पादन मात्र निर्वाचित सदस्य को तब तक अयोग्य नहीं ठहराएगा जब तक कि वह वैधानिक कर्तव्य के गैर-निष्पादन के लिए एक अच्छा कारण देने में सक्षम न हो। इस प्रकार, वैधानिक कर्तव्य का गैर-निष्पादन स्वत: अयोग्यता का कारण नहीं बनता है।"
न्यायमूर्ति पेडणेकर ने आगे कहा कि एक निर्वाचित सदस्य को असाधारण परिस्थितियों में हटाया जाना है और उसे उसके खिलाफ विशिष्ट आरोप के बारे में बताना होगा और साथ ही निर्वाचित सदस्य को वैधानिक कर्तव्य निभाने में उसकी विफलता के लिए पर्याप्त कारण बताने का अवसर दिया जाना चाहिए।
पोटे के अनुसार, कोविड-19 महामारी के प्रसार के कारण आपदा प्रबंधन अधिनियम और आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 के तहत जारी प्रतिबंधात्मक आदेशों के कारण वह 2021 की पहली छमाही में चार बैठकें नहीं कर सके।
उन्होंने बताया कि प्रतिबंधात्मक आदेश हटाए जाने के तुरंत बाद, उन्होंने 3 सितंबर, 2021, 16 नवंबर और 30 नवंबर, 2021 को बैठकें कीं और 26 जनवरी, 2022 को एक ऑनलाइन बैठक की।
इसलिए, उन्होंने तर्क दिया कि वह महाराष्ट्र ग्राम पंचायत अधिनियम की धारा 7 के अनुरूप हैं, जो एक वित्तीय वर्ष में चार बैठकें आयोजित करना अनिवार्य करता है और ऐसी दो बैठकों के बीच का अंतर चार महीने से अधिक नहीं होना चाहिए।
हालांकि, कलेक्टर ने पोटे को इस आधार पर अयोग्य घोषित कर दिया कि उन्होंने लगातार बैठकें कीं और प्रावधान में चार महीने के अंतराल वाले हिस्से का पालन नहीं किया।
कोर्ट ने हालांकि कलेक्टर के तर्क से असहमति जताई।
इसलिए, खंडपीठ ने कलेक्टर के आदेश को रद्द कर दिया और ग्राम सभा में पोटे की स्थिति बहाल कर दी।
[आदेश पढ़ें]
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