Navroz Seervai, Prashant Bhushan 
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अवमानना क्षेत्राधिकार का निर्वचन व व्याख्या त्रुटिपूर्ण: प्रशांत भूषण निर्णय पर नवरोज सिरवई ने कहा

नवरोज़ सरवई का मानना है कि यह आदेश स्वतंत्र भाषण के प्रचलन को हतोत्साहित करेगा एवं भूषण एक उदाहरण बनाते हुए एक मजबूत संदेश वाकियों को भेजने के अपने उद्देश्य में सफल होंगे।

Bar & Bench

वरिष्ठ अधिवक्ता नवरोज सरवई ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश जिसमे न्यायालय की अवमानना का प्रशांत भूषण को अपराधी माना है पर अपना बयान जारी किया है कि यह आदेश नागरिक समाज के उस हिस्से पर हमला है जो न्यायालय की घटनाओं से परिचित है।

14 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने अपने दो विवादास्पद ट्वीट के लिए एडवोकेट प्रशांत भूषण को अदालत की अवमानना ​​का दोषी मानते हुए अपना फैसला सुनाया। अपने 108 पन्नों के लंबे फैसले में कोर्ट ने अन्य बातों के अलावा कहा है कि अगर इस प्रकृति के हमले से निपटा नहीं गया, तो यह राष्ट्रीय सम्मान और प्रतिष्ठा को प्रभावित कर सकता है।

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"... उदारता को इस हद तक नहीं बढ़ाया जा सकता है, जो कि दुर्भावनापूर्ण और मिथ्या को निपटने में कमजोरी का कारण न बने।"

वरिष्ठ अधिवक्ता नवरोज़ सरवई का कहना है कि यह निर्णय न केवल "जनता की नज़र में न्यायालय की “गरिमा और महिमा” को बरकरार रखने के नाम पर स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति पर हमला है”, बल्कि सभ्य समाज के एक निश्चित वर्ग पर एक सोचा समझा हमला प्रतीत होता है।

उनका मानना है कि कानूनी व्यवसाय के सदस्य जो कि न्यायाधीशों के न्यायालय के अंदर एवं बाहर के आचरण से परिचित हैं, इस फैसले में हुए हमले को दर्शाते हैं।

इस निर्णय का उद्देश्य भूषण को एक उदाहरण बनाना और कानूनी व्यवसाय के अन्य सदस्यों को एक मजबूत संदेश भेजना है। सीनियर अधिवक्ता का कहना है कि उक्त आदेश से बोलने एवं सोचने कि स्वतंत्रता हतोत्साहित होगी।

देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है कि यह चाह अपने इरादे और प्रभाव दोनों मे सफल होगी
नवरोज सिरवई

यह आदेश एक मिसाल के रूप में कार्य करेगा और संस्था को आलोचना से बचाने में उद्धत किया जाएगा जैसी आलोचना वर्तमान में प्रवासी संकट से निपटने के लिए न्यायालयों के संचालन पर कि गयी।

विवरण इस प्रकार है:

"आदेश जनता की निगाह में न्यायालय की "गरिमा और महिमा" को बरकरार रखने के नाम पर स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति पर हमला है। अवमानना के क्षेत्राधिकार में उक्त निर्णय अपने तर्क, विश्लेषण एवं व्याख्या से स्पष्ट रूप से त्रुटिपूर्ण है। हालांकि, यह वर्षों से अवमानना ​​पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों से परिचित लोगों के लिए आश्चर्य की बात नहीं है, संवैधानिक कानून के प्रमुख लेखकों ने सर्वोच्च न्यायालय में टिप्पणी की है कि इस शक्ति द्वारा नियुक्त करने के लिए संविधान इस पर विचार करने में चयन योग्य है। पी शिव शंकर के मामलों में अंतर, कानून मंत्री होने के नाते और [ईएमएस] नंबूदरीपाद या अरुंधति रॉय की भूमिकाएँ स्पष्ट हैं।

बहुत अधिक चिंता की बात यह है कि यह निर्णय नागरिक समाज के एक ऐसे वर्ग पर हमला प्रतीत होता है जो न्यायालय में क्या होता है और न्यायालय के भीतर और बाहर न्यायाधीशों के आचरण से परिचित है, अर्थात् कानूनी पेशे के सदस्य हैं। यह ऐसे सदस्य हैं जो न्यायपालिका में गोइंग-ऑन को अंतरंगता की डिग्री के साथ बोल सकते हैं जिसमें दूसरों की कमी है। निर्णय का आम तौर पर मुक्त भाषण पर एक द्रुतशीतन प्रभाव होगा, और यह इसका उद्देश्य प्रतीत होता है, लेकिन यह कानूनी पेशे में एक मजबूत संदेश भेजने का भी इरादा है, प्रशांत भूषण का एक उदाहरण बनाकर अपने मौलिक अधिकार का उपयोग करने का साहस कर बोलने की स्वतंत्रता के सबंध मे।

देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है कि यह इच्छा, अपने इरादे और प्रभाव दोनों मे सफल होती है। न्यायालय द्वारा पूर्व में बताई गई उस संस्था की रक्षा के लिए निर्णय को मिसाल के रूप में उद्धृत किया जाएगा, जो यह जानती है कि उसका आचरण और उसकी स्थिति उसे नागरिक समाज के स्पेक्ट्रम पर प्रतिकूल टिप्पणी और आलोचना के लिए प्रभाव डालती है, जैसा कि हाल ही में प्रवासी संकट की प्रारंभिक प्रतिक्रिया में हुआ था। इसके विपरीत सभी विरोध के बावजूद कोर्ट स्पष्ट रूप से यह बर्दाश्त नहीं कर सकती "