दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है, जिसमें भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत किसी भी व्यक्ति (पुरुष या महिला) के साथ गैर-सहमति से किए गए गुदामैथुन या अन्य 'अप्राकृतिक' यौन संबंधों को दंडित करने के प्रावधान को बाहर रखे जाने को चुनौती दी गई है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ के समक्ष आज जनहित याचिका पर सुनवाई की गई। न्यायालय ने मामले को मंगलवार को सूचीबद्ध करने पर सहमति जताई।
अब निरस्त हो चुकी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 में पहले "किसी भी पुरुष, महिला या पशु के साथ प्रकृति के आदेश के विरुद्ध शारीरिक संबंध" बनाने के लिए आजीवन कारावास या दस साल की जेल की सज़ा का प्रावधान था।
2018 में नवतेज सिंह जौहर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 आईपीसी के तहत सहमति से यौन कृत्यों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया।
शीर्ष अदालत ने ऐतिहासिक फ़ैसले में कहा था, "धारा 377 के प्रावधान वयस्कों के विरुद्ध गैर-सहमति वाले यौन कृत्यों, नाबालिगों के विरुद्ध शारीरिक संबंध के सभी कृत्यों और पशुता के कृत्यों को नियंत्रित करना जारी रखेंगे।"
इस साल जुलाई में बीएनएस ने आईपीसी की जगह ले ली।
बीएनएस के तहत "अप्राकृतिक यौन संबंध" के गैर-सहमति वाले कृत्यों को अपराध की श्रेणी में रखने का कोई प्रावधान नहीं है।
धारा 377 आईपीसी के समकक्ष की अनुपस्थिति की आलोचना की गई है क्योंकि विशेषज्ञों का कहना है कि अगर किसी पुरुष या ट्रांसजेंडर व्यक्ति के साथ बलात्कार किया जाता है तो उसे लागू करने का कोई प्रावधान नहीं है।
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PIL in Delhi High Court challenges exclusion of 'unnatural offences' in BNS