कर्नाटक उच्च न्यायालय ने गुरुवार को एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर राज्य से जवाब मांगा, जिसमें कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार की पांच गारंटियों को लागू करने के लिए स्थापित एजेंसियों में कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं की नियुक्ति पर सवाल उठाया गया है। [पी राजीव बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य]
मुख्य न्यायाधीश एनवी अंजारिया और न्यायमूर्ति एमआई अरुण की पीठ ने आज कहा कि यदि याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाई गई चिंताएं सही हैं, तो प्रथम दृष्टया यह एक अप्रिय स्थिति को दर्शाता है।
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 27 मार्च को तय की है।
फोकस में आने वाली योजनाएं 2023 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा पेश किए गए चुनाव घोषणापत्र ('सर्व जनसंगठित शांति थोटा') का हिस्सा थीं, और इसमें पाँच गारंटी शामिल हैं, अर्थात् - (i) गृह ज्योति (सभी घरों को 200 यूनिट मुफ्त बिजली); (ii) गृह लक्ष्मी (परिवार की प्रत्येक महिला मुखिया को हर महीने 2,000 रुपये); (iii) अन्न भाग्य (गरीबी रेखा से नीचे के परिवार के प्रत्येक व्यक्ति को प्रति माह खाद्यान्न); (iv) युवानिधि (बेरोजगार युवाओं के लिए वित्तीय सहायता); और (v) शक्ति (महिलाओं के लिए मुफ्त परिवहन)।
जनवरी 2024 में, राज्य ने राज्य, जिला, तालुका और बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) स्तर पर इन योजनाओं को लागू करने के लिए समितियों के गठन की घोषणा की। उसी वर्ष पारित परिणामी आदेशों में, न्यायालय ने ऐसे पैनलों के सदस्यों को दिए जाने वाले पारिश्रमिक का भी संकेत दिया।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता और कर्नाटक विधानसभा के पूर्व सदस्य पी राजीव ने अपनी रिट याचिका में उच्च न्यायालय के समक्ष राज्य के इन आदेशों की वैधता पर सवाल उठाया है।
उन्होंने तर्क दिया है कि कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता जो चुनावी राजनीति में टिक नहीं पाए और जिनके पास पर्याप्त शैक्षणिक या अन्य योग्यताएं नहीं हैं, उन्हें इन कार्यान्वयन एजेंसियों का अध्यक्ष/उपाध्यक्ष/सदस्य बना दिया गया है।
राजीव ने अपनी दलील में कहा, "कार्यान्वयन समिति के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पद पर निजी प्रतिवादियों की नियुक्तियां शैक्षिक या तकनीकी योग्यता को ध्यान में रखे बिना की गई हैं और उक्त नियुक्तियां केवल अपने कुछ पार्टी पदाधिकारियों को विशेषाधिकार देने के लिए की गई हैं, जो चुनावी राजनीति में जगह नहीं बना पाए।"
उनकी वकील वरिष्ठ अधिवक्ता अरुणा श्याम ने आज तर्क दिया कि कार्यान्वयन समिति में नियुक्त अध्यक्ष एचएम रेवन्ना को भी राज्य द्वारा मनमाने ढंग से कैबिनेट रैंक प्रदान किया गया है।
इसके अलावा, उन्होंने तर्क दिया कि इस निकाय में नियुक्त उपाध्यक्षों - एसआर पाटिल बयदगी, डॉ. पुष्पा अमरनाथ, मेहराज खान और सूरज हेगड़े को बिना किसी आधार के राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया है।
अधिवक्ता सुयोग हेरेले के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है, "गारंटी योजना की कार्यान्वयन समिति के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को कैबिनेट का दर्जा/रैंक देना तर्कहीन और अवैज्ञानिक है तथा यह जनता के पैसे की बर्बादी के अलावा कुछ नहीं है।"
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