Supreme Court and couple
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लिव-इन रिलेशनशिप में व्यक्तियों के लिए पंजीकरण और सामाजिक सुरक्षा की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष जनहित याचिका

Bar & Bench

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है जिसमें केंद्र सरकार को लिव-इन रिलेशनशिप के पंजीकरण और लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले नागरिकों की सामाजिक सुरक्षा के लिए दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश देने की मांग की गई है। [ममता रानी बनाम भारत संघ]।

वकील ममता रानी द्वारा दायर याचिका में प्रार्थना की गई है कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वालों को सामाजिक समानता और सुरक्षा दी जानी चाहिए।

याचिका में कहा गया है अदालतों ने हमेशा लिव-इन पार्टनर्स सहित देश के सभी नागरिकों को सुरक्षा देने के लिए काम किया है, और लिव-इन पार्टनरशिप के सदस्यों की रक्षा करने वाले कई निर्णय पारित किए हैं, चाहे वह महिलाएं हों, पुरुष हों या ऐसे रिश्तों से पैदा हुए बच्चे हों।

याचिका मे कहा, "बार-बार यह माननीय न्यायालय लिव-इन पार्टनर्स का रक्षक रहा है और कई फैसले पारित किए हैं जो लिव-इन पार्टनरशिप के सदस्यों को सुरक्षा देने का प्रभाव डाल रहे हैं, चाहे वह महिलाएं हों, पुरुष हों या ऐसे रिश्ते से पैदा हुए बच्चे भी हों।"

याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि लिव-इन पार्टनरशिप को पंजीकृत करने में विफलता स्वतंत्रता से जीने के संवैधानिक अधिकारों (अनुच्छेद 19) और जीवन की सुरक्षा के अधिकार (अनुच्छेद 21) और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन करती है।

याचिका में लिव-इन रिलेशनशिप को नियंत्रित करने के लिए कानून बनाने और केंद्र सरकार द्वारा देश में लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों की सही संख्या का पता लगाने के लिए एक डेटाबेस बनाने की तत्काल आवश्यकता पर भी जोर दिया गया है।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यह केवल लिव-इन पार्टनरशिप के पंजीकरण को अनिवार्य बनाकर ही प्राप्त किया जा सकता है।

याचिकाकर्ता ने यह भी प्रस्तुत किया कि लिव-इन पार्टनरशिप को कवर करने वाले नियमों और दिशानिर्देशों की अनुपस्थिति के कारण लिव-इन पार्टनर द्वारा किए गए अपराधों में भारी वृद्धि हुई है, जिसमें बलात्कार और हत्या जैसे प्रमुख अपराध शामिल हैं।

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PIL before Supreme Court seeks registration and social security for persons in live-in relationships