सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. आदिश सी अग्रवाल ने शीर्ष अदालत में मामलों को सूचीबद्ध करने में कथित खामियों के खिलाफ भारत के मुख्य न्यायाधीशों (सीजेआई) को खुले पत्र लिखने वाले वरिष्ठ वकीलों पर निशाना साधा है।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ को सात दिसंबर को लिखे पत्र में अग्रवाल ने कहा कि ऐसे पत्र जो प्रभावशाली वादियों के इशारे पर बेबुनियाद और काल्पनिक आरोप लगाते हैं , उन्हें नजरअंदाज किया जाना चाहिए।
पत्र मे कहा गया, "मामलों के असाइनमेंट पर न्यायिक या प्रशासनिक पक्ष पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है और परिणामस्वरूप, इसे न तो मौखिक आदेश के माध्यम से होना आवश्यक है और न ही इसे प्रश्न उठाने वाले किसी व्यक्ति को जवाब देकर उचित ठहराया जाना आवश्यक है। . इसलिए ऐसे पत्र लिखना दुर्भावनापूर्ण है और प्रशासन को शर्मिंदा करने वाला है। अब समय आ गया है कि ऐसे पत्र लिखने की प्रथा को ख़त्म कर देना चाहिए।"
एससीबीए प्रमुख ने लिखा कि इस तरह की प्रथा पर रोक लगाने से बार और न्याय प्रशासन के हितों की रक्षा होगी।
एससीबीए अध्यक्ष ने मामलों पर बहस करने के लिए बार के युवा सदस्यों को विश्वास दिलाने के लिए मौजूदा सीजेआई की भी प्रशंसा की, जिसने इस तरह के खुले पत्र लिखने वाले वरिष्ठ वकीलों की नाराजगी को आमंत्रित किया होगा।
पत्र में आगे अपील की गई है कि सीजेआई चंद्रचूड़ न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर इस तरह के स्व-सेवा और दुर्भावनापूर्ण, प्रेरित और संदिग्ध हमलों को अनदेखा करें।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मामलों को सूचीबद्ध करने के मुद्दे ने हाल ही में ध्यान आकर्षित किया है।
अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री को पत्र लिखकर कुछ मामलों को सूचीबद्ध करने के नियमों के कथित मनमाने उल्लंघन पर शिकायत की।
वरिष्ठ अधिवक्ता और एससीबीए के पूर्व अध्यक्ष दुष्यंत दवे ने भी हाल ही में सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर संवेदनशील मामलों को सूचीबद्ध करने पर नाराजगी व्यक्त की थी।
मुख्य न्यायाधीश को संबोधित एक खुले पत्र में दवे ने दावा किया कि कुछ पीठों द्वारा सुने जा रहे कई मामलों को स्थानांतरित कर दिया गया और उन्हें अन्य पीठों के समक्ष सूचीबद्ध कर दिया गया। दवे ने दावा किया कि यह उच्चतम न्यायालय के नियमों और हैंडबुक ऑन प्रैक्टिस एंड प्रोसीजर ऑफ कोर्ट का उल्लंघन है, जो मामलों को सूचीबद्ध करने को नियंत्रित करता है।
उन्होंने कहा था कि इस तरह की प्रथा संस्थान के लिए अच्छी नहीं है, और इसलिए सुधारात्मक कदम उठाए जाने पर जोर दिया।
दवे ने नवंबर में खुली अदालत में टिप्पणी की थी कि न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा पहले सुने गए मामलों को गलत तरीके से न्यायमूर्ति त्रिवेदी की अध्यक्षता वाली पीठ को स्थानांतरित किया जा रहा है, जो न्यायमूर्ति बोस से जूनियर हैं।
गौरतलब है कि न्यायिक नियुक्तियों से संबंधित मामले को हाल ही में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ से हटा दिया गया था, जो इस मामले की सुनवाई कर रही थी।
न्यायमूर्ति कौल खुद इससे प्रभावित नहीं हुए, और 5 दिसंबर को स्पष्ट किया कि उनकी सूची से मामले को हटाने में उनका कोई हाथ नहीं है।
[अग्रवाल का पत्र पढ़ें]
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