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पद का दुरुपयोग करने वाला पुलिस अधिकारी नियमित नागरिक के लिए उपलब्ध अनुमानों का हकदार नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने जमानत रद्द की

Bar & Bench

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पारित एक आदेश में कहा कि अपने मौलिक कर्तव्यों में विफल रहने वाला एक पुलिस अधिकारी आपराधिक मामलों में अन्य नागरिकों के लिए उपलब्ध लाभ का हकदार नहीं होगा। [झारखंड राज्य बनाम संदीप कुमार]।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने एक शिकायत में आरोपी का नाम बदलने के आरोपी पुलिस अधिकारी को झारखंड उच्च न्यायालय द्वारा दी गई अग्रिम जमानत रद्द कर दी

पीठ ने समझाया, "किसी वरिष्ठ पुलिस अधिकारी से कम नहीं के खिलाफ लगाए गए इन गंभीर आरोपों के आलोक में, कानून प्रवर्तन की मशीनरी में एक आवश्यक दल, उच्च न्यायालय को केवल पूछने के लिए मामले में उदार रुख नहीं अपनाना चाहिए था...जांच में हेराफेरी करने के आरोपों का सामना कर रहे एक पुलिस अधिकारी को इस तरह की राहत देना ताकि किसी का पक्ष लिया जा सके आरोपी समाज में गलत संकेत भेजेंगे। यह जनहित के खिलाफ होगा."

पीठ ने स्पष्ट किया कि आमतौर पर ऐसे अपराधों में आरोपी अग्रिम जमानत राहत का हकदार होता है लेकिन यह यहां लागू नहीं होगा।

"वही मानक तब लागू नहीं होगा जब आरोपी जांच अधिकारी हो, एक पुलिस अधिकारी जिस पर जांच को सही निष्कर्ष तक ले जाने का कर्तव्य है ताकि दोषियों को दंडित किया जा सके। प्रतिवादी पर एक पुलिस अधिकारी के रूप में इस मौलिक कर्तव्य में विफल रहने का आरोप है...आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे एक सामान्य व्यक्ति पर लागू होने वाली धारणाएं और अन्य विचार उस पुलिस अधिकारी के साथ व्यवहार करते समय समान महत्व नहीं रख सकते हैं, जिस पर अपने पद का दुरुपयोग करने का आरोप है।"

Justices Vikram Nath and PV Sanjay Kumar

अदालत ने उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ अपील का निपटारा करते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिसमें पुलिस अधिकारी को गिरफ्तारी पूर्व जमानत दी गई थी, जिस पर प्रतिरूपण और जालसाजी के अपराधों के लिए मामला दर्ज किया गया था। अधिकारी ने कथित तौर पर रंजीत कुमार साव के पिता का नाम लखन सॉ से बदलकर बालगोविंद साव कर दिया था और बाद में लखन साव के बेटे रंजीत कुमार साव को बचाने के लिए बालगोविंद साव के बेटे रंजीत कुमार साव को गिरफ्तार कर लिया था।

निचली अदालत ने इससे पहले उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी। आरोप था कि उसने एक मामले में दर्ज प्राथमिकी में आरोपी का नाम बदल दिया था।

शीर्ष अदालत ने शुरुआत में कहा कि जमानत के मामलों में आरोपी की विशिष्ट परिस्थितियों और जनता/राज्य के व्यापक हित को भी ध्यान में रखना होगा।

अपील को अंततः अनुमति दी गई थी। उच्च न्यायालय को निर्देश दिया गया था कि अगर अधिकारी को गिरफ्तार किया जाता है तो वह आरोपी की नियमित जमानत पर अपने गुणों के आधार पर फैसला करे।

झारखंड सरकार की ओर से अधिवक्ता तुलिका मुखर्जी, बीनू शर्मा और वेंकट नारायण के साथ अतिरिक्त स्थायी वकील सौरभ जैन पेश हुए।

अधिवक्ता अनूप कुमार, देवव्रत, शेखर प्रसाद गुप्ता, नेहा जायसवाल, श्रुति सिंह, आशुतोष झा और प्रज्ञा चौधरी ने आरोपी संदीप कुमार का प्रतिनिधित्व किया।

[निर्णय पढ़ें]

State of Jharkhand vs Sandeep Kumar.pdf
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Police officer who abused office not entitled to presumptions available to regular citizen: Supreme Court cancels bail