Uttar Pradesh and Supreme Court  
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"उन्होंने केवल झूठ बोला है": सुप्रीम कोर्ट ने यूपी के पूर्व मुख्य सचिव के खिलाफ अवमानना ​​नोटिस जारी किया

उत्तर प्रदेश में सजा माफी आवेदनों पर कार्रवाई में देरी से संबंधित एक मामले में पूर्व जेल अधिकारी को संबोधित करते हुए अदालत ने आज टिप्पणी की, "आपके कृत्यो के कारण किसी और की स्वतंत्रता दांव पर लगी है।"

Bar & Bench

सुप्रीम कोर्ट ने एक नोटिस जारी कर पूछा है कि उत्तर प्रदेश के एक (अब हटाए जा चुके) जेल अधिकारी के खिलाफ अदालत की अवमानना ​​की कार्यवाही क्यों न शुरू की जाए, क्योंकि उसने एक कैदी की माफी की फाइल पर काम करने में हुई देरी के बारे में गलत बयान दिया था [अशोक बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य]।

न्यायमूर्ति अभय एस ओका और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने इससे पहले उत्तर प्रदेश कारागार प्रशासन एवं सुधार विभाग के प्रधान सचिव के रूप में कार्यरत अधिकारी राजेश कुमार सिंह को उनके स्पष्टीकरण में देखे गए विरोधाभासों को स्पष्ट करने का एक और अवसर दिया था।

हालांकि, अधिकारी द्वारा दायर ताजा हलफनामे ने भी न्यायालय को प्रभावित नहीं किया।

न्यायमूर्ति ओका ने आज अधिकारी को संबोधित करते हुए कहा, "हमें लगा कि यह अधिकारी अपना अपराध स्वीकार कर लेगा, लेकिन पिछले तीन मौकों पर उसने केवल झूठ बोला है...आपने अपना अपराध स्वीकार नहीं किया है, अब इसका परिणाम भुगतिए। न्यायालय के आदेश की पूरी तरह अवहेलना की है...आपके कृत्यों के कारण किसी और की स्वतंत्रता दांव पर लगी है।"

इस बीच, उत्तर प्रदेश सरकार के वकील ने न्यायालय को सूचित किया कि अधिकारी को हटा दिया गया है और वह अनुशासनात्मक कार्यवाही का सामना कर रहा है।

हालांकि, न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि इस तरह की कार्रवाई अधिकारी को उसके स्पष्ट कदाचार से मुक्त करने के लिए पर्याप्त नहीं है। न्यायालय ने कहा कि पूरा प्रकरण "बहुत खेदजनक स्थिति" को दर्शाता है।

अदालत के आदेश में कहा गया है, "प्रथम दृष्टया हमें ऐसा प्रतीत होता है कि हलफनामों में उनके द्वारा लिया गया रुख, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश होने के समय उनके द्वारा लिए गए रुख से पूरी तरह विरोधाभासी है। इसलिए प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने झूठा हलफनामा दायर किया है। इसलिए, अधिकारी को नोटिस जारी करें कि उनके खिलाफ आपराधिक अवमानना ​​क्यों न शुरू की जाए और झूठी गवाही का अपराध क्यों न शुरू किया जाए।"

Justice Abhay S Oka and Justice Augustine George Masih

न्यायालय एक दोषी की जेल की सजा में छूट (जेल से जल्दी रिहाई) के लिए याचिका पर सुनवाई कर रहा था।

न्यायालय ने हाल ही में दोषी की छूट फाइल को संसाधित करने में राज्य अधिकारियों द्वारा की गई महत्वपूर्ण देरी को ध्यान में रखते हुए उसे अस्थायी जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया।

न्यायालय ने यह भी स्पष्टीकरण मांगा था कि इस साल 13 मई को शीर्ष न्यायालय द्वारा एक महीने की समय सीमा निर्धारित किए जाने के बावजूद दोषी की छूट फाइल को संसाधित करने में इतना समय क्यों लग रहा है।

संबंधित जेल अधिकारी (राजेश कुमार सिंह) ने शुरू में देरी के कारणों के रूप में राज्य सचिवालय द्वारा धीमी प्रतिक्रिया और आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) का हवाला दिया था।

हालांकि, सिंह द्वारा न्यायालय के आदेश पर बाद में दायर एक हलफनामे और उसमें बताई गई घटनाओं की समय-सीमा से पता चला कि यह देरी का कारण नहीं था।

न्यायालय ने 20 अगस्त और 28 अगस्त को इन विरोधाभासों को गंभीरता से लिया था।

आज की सुनवाई में न्यायालय ने आगे कहा कि उसने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि एमसीसी को दोषी की छूट फाइल पर निर्णय लेने के रास्ते में नहीं आना चाहिए।

न्यायालय ने राज्य द्वारा उत्तर प्रदेश राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता पर इस गड़बड़ी के लिए दोष मढ़ने के प्रयासों की भी आलोचना की।

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"He has spoken only lies": Supreme Court issues contempt notice against former UP principal secretary