सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को आत्महत्या के लिए उकसाने के आपराधिक अपराध की परिभाषा के संबंध में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की व्याख्या की आलोचना की [निपुण अनेजा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य]।
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 के तहत हिंदुस्तान यूनिलीवर के अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को बरकरार रखने वाले उच्च न्यायालय के आदेश को कायम रखते हुए यह मौखिक टिप्पणी की।
पीठ ने आज टिप्पणी की, "(इलाहाबाद) उच्च न्यायालय को नहीं पता कि धारा 306 आईपीसी के तहत अपराध क्या होता है!"
इस मामले में आरोप लगाया गया था कि हिंदुस्तान यूनिलीवर की समय से पहले सेवानिवृत्ति की सिफारिश के कारण एक कर्मचारी ने आत्महत्या कर ली।
हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया था कि यह आत्महत्या के लिए उकसाने के समान है।
(इलाहाबाद) उच्च न्यायालय को यह पता ही नहीं है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के अंतर्गत अपराध क्या होता है!सुप्रीम कोर्ट
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कंपनी की कार्रवाई को मृतक को आत्महत्या के लिए उकसाने के रूप में नहीं समझा जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को पलटते हुए कहा, "धारा 306 के तहत आपराधिक कार्यवाही जारी रखने की अनुमति देना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग और दुरूपयोग होगा। अपील स्वीकार की जाती है, विवादित आदेश को खारिज किया जाता है, अदालत में लंबित कार्यवाही को खारिज किया जाता है।"
आईपीसी की धारा 306 आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध को दंडित करती है। इसी तरह का प्रावधान भारतीय न्याय संहिता, 2023 (बीएनएस) की धारा 108 में पाया जाता है, जिसने इस साल 1 जुलाई से आईपीसी की जगह ले ली है।
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Supreme Court criticises Allahabad High Court order on abetment of suicide