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सुप्रीम कोर्ट ने जिला जज पद के इच्छुक उम्मीदवार को असफल घोषित किए जाने के 9 साल बाद नियुक्ति का आदेश दिया

न्यायालय ने मणिपुर HC के उस प्रस्ताव को भी रद्द कर दिया जिसमे न्यायिक भर्ती के साक्षात्कार खंड मे कट-ऑफ निर्धारित किया गया क्योंकि कोर्ट ने पाया कि इसे लागू नियमो में संशोधन किए बिना लागू किया गया था।

Bar & Bench

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में जिला न्यायाधीश पद के एक अभ्यर्थी को राहत प्रदान की, जिसे कट-ऑफ नियमों में अंतिम समय में किए गए बदलाव के बाद असफल घोषित कर दिया गया था [सलाम समरजीत सिंह बनाम मणिपुर उच्च न्यायालय, इंफाल एवं अन्य]।

ऐसा करते हुए, न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय, सुधांशु धूलिया और एसवीएन भट्टी की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने आवेदक (याचिकाकर्ता) की नौ साल लंबी कानूनी लड़ाई को भी समाप्त कर दिया और उसकी नियुक्ति का निर्देश दिया।

न्यायालय ने याचिकाकर्ता के तर्क में योग्यता पाई कि उसकी वैध उम्मीदें धरी की धरी रह गईं, क्योंकि उसे न्यायाधीश-चयन प्रक्रिया के साक्षात्कार खंड के लिए निर्धारित नए कट-ऑफ अंकों के बारे में सूचित नहीं किया गया था।

न्यायालय ने तर्क दिया कि "याचिकाकर्ता को मौखिक परीक्षा खंड के लिए न्यूनतम कट-ऑफ के बारे में कोई सूचना नहीं थी, जिसे मौखिक परीक्षा की पूर्व संध्या पर, लिखित परीक्षा के समापन के काफी बाद शुरू किया गया था। यदि उम्मीदवार को पहले से सूचित किया गया होता, तो वह निष्पक्ष और पूर्वानुमानित प्रक्रिया सुनिश्चित करते हुए तदनुसार तैयारी कर सकता था।"

हालांकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उसकी वरिष्ठता की गणना उसकी नियुक्ति की तिथि से की जाएगी।

Justices Sudhanshu Dhulia, Hrishikesh Roy and SVN Bhatti

न्यायालय ने मणिपुर उच्च न्यायालय के 2015 के उस प्रस्ताव को भी रद्द कर दिया, जिसमें साक्षात्कार खंड में 40 प्रतिशत न्यूनतम कट-ऑफ अंक निर्धारित किया गया था, क्योंकि न्यायालय ने पाया कि इसे लागू न्यायिक भर्ती नियमों (मणिपुर न्यायिक सेवा नियम, 2005) में संशोधन किए बिना लागू किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "यद्यपि उच्च न्यायालय के प्रस्ताव के माध्यम से न्यूनतम कट-ऑफ लागू करने का इरादा वास्तविक हो सकता है, लेकिन वर्तमान मामले में यह वैधानिक नियमों को दरकिनार नहीं कर सकता है। साक्षात्कार के लिए न्यूनतम अंक नियमों में संशोधन किए बिना उच्च न्यायालय के प्रस्ताव के माध्यम से निर्धारित किए गए थे।"

पृष्ठभूमि के अनुसार, सलाम समरजीत सिंह (याचिकाकर्ता) वर्ष 2013 में मणिपुर न्यायिक सेवा ग्रेड-I में जिला न्यायाधीश (प्रवेश स्तर) परीक्षा में शामिल हुए थे।

उन्होंने लिखित परीक्षा पास कर ली थी और वर्ष 2015 में उन्हें साक्षात्कार के लिए उपस्थित होना था। हालांकि, साक्षात्कार से कुछ समय पहले, जनवरी 2015 में, मणिपुर उच्च न्यायालय की पूर्ण अदालत ने मौखिक परीक्षा/ साक्षात्कार के लिए कट-ऑफ के रूप में 40 प्रतिशत निर्धारित करने का प्रस्ताव जारी किया।

साक्षात्कार में, सिंह ने 50 में से 18.8 अंक (40 प्रतिशत से कम) प्राप्त किए और इसलिए उन्हें असफल घोषित कर दिया गया।

उन्होंने इस घटनाक्रम को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि नियमों को उन्हें सूचित किए बिना ही बदल दिया गया।

न्यायालय ने पाया कि मणिपुर न्यायिक सेवा नियम (एमजेएस नियम), 2005 (जैसा कि वर्ष 2013 में था) के तहत किसी उम्मीदवार को सफल घोषित किए जाने के लिए केवल संचयी रूप से 50 प्रतिशत या उससे अधिक अंक प्राप्त करने होते थे। यदि ये नियम लागू होते तो सिंह को सफल घोषित किया जाता।

न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि सिंह के मामले में केवल इन नियमों को ही लागू किया जाना चाहिए था और उच्च न्यायालय द्वारा 2015 में पारित प्रस्ताव अवैध था।

न्यायालय ने यह भी कहा कि यद्यपि नए कट-ऑफ को बाद में मार्च 2016 से एमजेएस नियमों में शामिल किया गया था, लेकिन ये संशोधित नियम सिंह के मामले में लागू नहीं होंगे।

न्यायालय ने उच्च न्यायालय को सिंह को जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने का आदेश दिया।

अधिवक्ता राणा मुखर्जी, अहंतेम रोमेन सिंह, ओइंड्रियाला सेन, मोहन सिंह, अनिकेत राजपूत, खोइसनम निर्मला देवी और राजीव मेहता याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए।

वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया और अधिवक्ता मैबाम नबघनश्याम सिंह, काव्या झावर और नंदिनी राय मणिपुर उच्च न्यायालय की ओर से पेश हुए।

[निर्णय पढ़ें]

Salam_Samarjeet_Singh_v__High_Court_of_Manipur_at_Imphal_and_Another.pdf
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Supreme Court orders appointment of District Judge aspirant 9 years after he was declared unsuccessful