सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पूर्व भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी संजीव भट्ट द्वारा 1990 के हिरासत में मौत के मामले में जमानत और आजीवन कारावास की सजा को निलंबित करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। [संजीव कुमार राजेंद्रभाई भट्ट बनाम गुजरात राज्य]
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि वह सजा को निलंबित करने और भट्ट को जमानत पर रिहा करने के पक्ष में नहीं है।
हालांकि, पीठ ने निर्देश दिया कि भट्ट द्वारा शीर्ष अदालत में दायर अपील पर प्राथमिकता के आधार पर सुनवाई की जाएगी।
पीठ ने अदालत में फैसला सुनाते हुए कहा, "हम संजीव भट्ट को जमानत देने के पक्ष में नहीं हैं। जमानत की प्रार्थना खारिज की जाती है। अपील की सुनवाई प्रभावित नहीं होगी। अपील की सुनवाई में तेजी लाई जाती है।"
यह मामला 1990 में हुई एक घटना से जुड़ा है, जब भट्ट जामनगर जिले में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक थे।
उन्होंने वहां सांप्रदायिक दंगा भड़कने के बाद आतंकवादी और विध्वंसकारी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (टाडा) के तहत करीब 133 लोगों को हिरासत में लिया था।
यह दंगा उस समय हुआ था, जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने उस साल 30 अक्टूबर को लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी के विरोध में भारत बंद का आह्वान किया था। लालकृष्ण आडवाणी राम मंदिर मुद्दे पर अयोध्या की रथ यात्रा शुरू कर रहे थे।
हिरासत में लिए गए लोगों में से एक प्रभुदास वैष्णानी की हिरासत से रिहा होने के बाद मौत हो गई।
उनके परिवार ने आरोप लगाया कि भट्ट और उनके सहयोगियों ने उन्हें हिरासत में प्रताड़ित किया।
वैष्णानी नौ दिनों तक पुलिस हिरासत में रहे, लेकिन जमानत पर रिहा होने के बाद उनकी किडनी फेल होने से मौत हो गई।
इसके बाद भट्ट और अन्य अधिकारियों के खिलाफ हिरासत में मौत के लिए एफआईआर दर्ज की गई और 1995 में मजिस्ट्रेट ने संज्ञान लिया।
इस मामले में दो सब-इंस्पेक्टर और तीन पुलिस कांस्टेबल समेत कुल सात पुलिस अधिकारी आरोपी थे।
गुजरात के जामनगर में एक सत्र न्यायालय ने भट्ट और एक अन्य पुलिसकर्मी को दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
जनवरी 2024 में गुजरात उच्च न्यायालय ने सजा और सज़ा के खिलाफ भट्ट की अपील को खारिज कर दिया।
इसके बाद उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जिसने अगस्त 2024 में इस मामले में गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया।
इसके बाद न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रखने से पहले सज़ा के निलंबन के पहलू पर सुनवाई की।
भट्ट दो अन्य मामलों में भी आरोपी हैं - 1996 का ड्रग प्लांटिंग मामला और 1997 का हिरासत में यातना मामला।
1996 के मामले में उन्हें सत्र न्यायालय ने दोषी ठहराया था और उसी के लिए 20 साल जेल की सजा सुनाई थी। इसके खिलाफ उनकी अपील गुजरात उच्च न्यायालय में लंबित है।
दिसंबर 2024 में मजिस्ट्रेट अदालत ने उन्हें बाद के मामले में बरी कर दिया था।
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Supreme Court rejects plea by ex-IPS Sanjiv Bhatt for bail, suspension of life sentence