सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के मौजूदा निदेशक संजय कुमार मिश्रा को कार्यकाल विस्तार देने के केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा।
भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना और जस्टिस कृष्ण मुरारी और हिमा कोहली की पीठ ने केंद्र को नोटिस जारी किया और मामले को 10 दिनों के बाद आगे के विचार के लिए पोस्ट कर दिया।
कोर्ट ने आदेश दिया, "हम सभी याचिकाओं पर नोटिस जारी करते हैं। 10 दिनों के बाद सूचीबद्द करें।"
कोर्ट कांग्रेस और टीएमसी नेताओं और डॉ जया ठाकुर, रणदीप सिंह सुरजेवाला, साकेत गोखले, महुआ मोइत्रा सहित अन्य लोगों द्वारा कार्यकाल विस्तार को चुनौती देने वाली कम से कम 8 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
कृष्ण चंदर सिंह, विनीत नारायण और मनोहरलाल शर्मा अन्य याचिकाकर्ता थे।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि मिश्रा के कार्यकाल को बढ़ाने का केंद्र सरकार का निर्णय शीर्ष अदालत के सितंबर 2021 के फैसले का उल्लंघन था, जिसने मिश्रा को और विस्तार देने के खिलाफ फैसला सुनाया था।
उस फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के 13 नवंबर, 2020 के पहले के एक फैसले की पुष्टि की थी, जिसने मिश्रा के नियुक्ति आदेश में पूर्वव्यापी संशोधन किया था, जिससे उनका कार्यकाल दो से तीन साल तक बढ़ गया था।
मिश्रा को पहली बार नवंबर 2018 में दो साल के कार्यकाल के लिए ईडी निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था। दो साल का कार्यकाल नवंबर 2020 में समाप्त हो गया था। मई 2020 में, वह 60 वर्ष की सेवानिवृत्ति की आयु तक पहुंच गए थे।
हालांकि, 13 नवंबर, 2020 को केंद्र सरकार ने एक कार्यालय आदेश जारी करते हुए कहा कि राष्ट्रपति ने 2018 के आदेश को इस आशय से संशोधित किया था कि 'दो साल' के समय को 'तीन साल' की अवधि में बदल दिया गया था। इसे एनजीओ कॉमन कॉज ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
जस्टिस एल नागेश्वर राव और बीआर गवई की बेंच ने सितंबर 2021 में कहा था कि केंद्र सरकार के पास पूर्वव्यापी बदलाव करने का अधिकार है, लेकिन यह केवल दुर्लभतम मामलों में ही किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने यह भी कहा था कि मिश्रा का कार्यकाल, जो समाप्त होने वाला था, उसे आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है।
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, केंद्र सरकार ने केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) अधिनियम में संशोधन करते हुए एक अध्यादेश लाया, जिसमें ईडी निदेशक के कार्यकाल को पांच साल तक बढ़ाने का अधिकार दिया गया था।
इसे अब शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई है।
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