सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1986 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा। [सिराज अहमद खान और अन्य बनाम यूपी राज्य और अन्य]।
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने वरिष्ठ वकील आर बसंत की दलीलें सुनने के बाद राज्य को नोटिस जारी किया।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए बसंत ने तर्क दिया कि अधिनियम पुलिस को शिकायतकर्ता, अभियोजक और निर्णायक बनने तथा आरोपी की पूरी संपत्ति कुर्क करने की अनुमति देता है।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता मनीष कुमार गुप्ता, मोहम्मद फारिस, अमन कुमार, रौनक अरोड़ा, आकाश राजीव और इंद्र लाल भी पेश हुए।
शीर्ष अदालत पहले से ही 2022 में दायर इसी तरह की एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार कर रही है।
बसंत ने कहा कि यह लंबित है और इस पर अभी विस्तार से सुनवाई होनी है।
अधिवक्ता अंसार अहमद चौधरी के माध्यम से दायर उस जनहित याचिका में अधिनियम की धारा 3, 12 और 14 के साथ-साथ 2021 के नियमों के नियम 16(3), 22, 35, 37(3) और 40 को चुनौती दी गई है, जो मामलों के पंजीकरण, संपत्तियों की कुर्की, जांच और मुकदमे से संबंधित हैं।
नियम 22 के अनुसार, अधिनियम के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज करने के लिए एक भी कार्य या चूक पर्याप्त होगी, जिससे आरोपी का आपराधिक इतिहास अप्रासंगिक हो जाएगा।
याचिका में कहा गया है कि किसी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ अधिनियम के तहत फिर से एफआईआर दर्ज करना, जिसने अपराध किया है और जिसके खिलाफ पहले ही एफआईआर दर्ज हो चुकी है, दोहरा खतरा है और यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 20(2) का उल्लंघन है।
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Supreme Court to examine validity of Uttar Pradesh Gangsters Act