कुछ नेक व्यक्ति:- अधिवक्ता नवदीप सिंह के साथ बातचीत में

Advocate Navdeep Singh
Advocate Navdeep Singh

नवदीप सिंह पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में एक अधिवक्ता हैं जो मुख्यतः रिट और संवैधानिक पक्ष की वकालत करते हैं और सैन्य कानून एवं सेवा मामलों में विशेषज्ञता रखते हैं।

वह चण्डीगढ में सशस्त्र बल अधिकरण बार एसोसिएशन के संस्थापन अध्यक्ष भी हैं और सैनिकों के अधिकार और अधिकरण से संबंधित मुद्दों में बहुत सक्रिय रूप से शामिल हैं । नवदीप सिंह ब्रुसेल्स में इंटरनेशनल सोसायटी फाॅर मिलिट्री लाॅ एण्ड लाॅ ऑफ वार के भी सदस्य हैं और सैन्य कानूनी और सार्वजनिक हित के मुद्दों पर विस्तृत रूप से लिखते हैं ।

नवदीप सिंह ने बार एण्ड बैंच के मुरली कृष्णन से बातचीत की । निम्नलिखित तथ्य हैं ।

नवदीप सिंह के बारे में हर प्रोफाईल को एक आदर्श रूप से उनके साथ इस अद्वितीय पहलू से शुरू करना चाहिए ।

नवदीप सिंह पूर्व मेजर हैं और पूर्व में प्रादेशिक सेना के साथ एक राष्ट्रीय सेवा स्वयंसेवक रहे हैं । उन्होंने स्वेच्छा से के अवकाश अवधि के दौरान आतंकवादी रोधी और परिचलन क्षेत्रों में कार्य किया है ।

सेवा सदस्यों और सैनिकों के सामाजिक कारणों के सुधार के प्रयासों के लिए उन्हें सेना और वायु सेना के दस प्रशंसा पत्रों से अलंकृत किया गया है । सिंह के शब्दों में:-

‘‘प्रादेशिक सेना उन लोगों के लिए एक स्वैच्छिक सेना है जो अन्य व्यवसाय या पेशे में लगे हुए हैं । यह रोजगार का स्रोत नहीं है, यह लोगों को आजीविका का स्रोत प्रदान नहीं करता है । अवधारणा यह है कि एक वर्ष में कुछ दिनों के लिए आप वर्दी पहनते हैं ताकि आपातकाल या युद्ध के मामले में आप राष्ट्र के लिए यहां-वहां हो सकें ।

प्रारम्भ में, मैं एक साल में लगभग दो महीने व्यतीत करता था बाद में लगभग दो सप्ताह । मुझे देश के विभिन्न हिस्सों में भेजा जाता था और आतंकवाद रोधी अभियानों में औपरेशन पराक्रम के दौरान भी सेवा की जाती थी, जिसे संसद के हमले के बाद अधिसूचित किया गया था ।’’

अधिकरण: संयुक्त लडाई

नवदीप सिंह का उद्देश्य न्यायाधिकरण के खिलाफ सर्वविदित है । उन्हें इसमें कोई संदेह नहीं है कि न्यायाधिकरण जैसा कि आज मौजूद है न्यायपालिका की स्वतंत्रता को दरकिनार करने के लिए है ।

‘‘यह कार्यकारी द्वारा न्यायिक कार्य का एक निहित अधिग्रहण है क्योंकि अधिकांश न्यायाधिकरण शायद अपीलीय अधिकरण को छोडकर, मूल प्रशासनिक मंत्रालयों के तहत कार्य कर रहे हैं । इन न्यायाधिकरणों को उसी मंत्रालय के खिलाफ आदेश पारित करना होगा जिसके तहत वे कार्य कर रहे हैं ।’’

इनके अलावा, अधिकरण सभी सुविधाओं और बुनियादी ढांचे के लिए मूल प्रशासनिक मंत्रालय पर निर्भर है ।

‘‘यह सिर्फ सैन्य सशस्त्र न्यायाधिकरण के साथ ही नहीं है, बल्कि अन्य समान रूप से स्थित न्यायाधिकरणों के साथ भी ऐसा ही है । इसलिए यहां पर हितों का पूर्ण संघर्ष है ।’’

नवदीप सिंह भी सोचते हैं कि इस मुद्दे पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है ।

‘‘मैं अभी भी यही महसूस करता हूं कि इस मुद्दे पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है । शायद वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार को छोडकर, जिन्होंने वास्तव में एक बदलाव लाने की कोशिश की है तथा अभी भी पूरी कोशिश कर रहे हैं, मुझे ऐसा कोई भी नहीं मिला जो इस मुद्दे पर पर्याप्त ध्यान केन्द्रित कर रहा हों। हम इधर-उधर की बातें सुनते हैं।’’

अधिकरण ‘‘सेवानिवृति के बाद के केन्द्र’’ नहीं बनने चाहिए

नवदीप सिंह का यह भी मानना है कि न्यायाधिकरणों को सेवानिवृत अधिकारियों और न्यायाधीशों का सहारा नहीं बनना चाहिए ।

‘‘अधिकरण केवल उन मुद्दों से निपटने के लिए मोहताज होना चाहिए जहां तकनीकी विशेषज्ञता की उच्च डिग्र्री की आवश्यकता होती है, कानून के अन्य सामान्य क्षेत्रों में नहीं । कानून के ऐसे सामान्य क्षेत्रों से निपटने के लिए नियमित अदालतों को मजबूत किया जाना चाहिए ।

यहां तक कि उच्च न्यायालयों में अधिक स्थाई रोस्टर होना चाहिए । विषय मामलों को रोस्टर के साथ एक या दो साल के लिए जोडा जाना चाहिए ताकि उच्च न्यायालय की बैंच स्वतः ही डी-फैक्टो स्पेशल न्यायालय बन जाए । फिर अधिकरण की आवश्यकता नहीं होगी।’’

अनुच्छेद 226, सैन्य सशस्त्र अधिकरण: ‘‘श्री कांत शर्मा, एल चन्द्र कुमार के बिल्कुल विपरीत’’

सर्वाेच्च न्यायालय के निर्णय भारत संघ बनाम मेजर जनरल श्री कांत शर्मा ने सैन्य सशस्त्र अधिकरण को सैन्य मामलों में निर्णायक अदालत बना दिया है । इस निर्णय ने अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को छीन लिया । चूंकि सर्वाेच्च न्यायालय में वैधानिक अपील आशा के साथ आती है कि इसमें ‘‘सामान्य सार्वजनिक महत्व के कानून का बिन्दु’’ होना चाहिए, नवदीप सिंह की राय है कि ऐसा नहीं है कि सभी मुकदमों पर अपील पेश हो।

आम धारणा के विपरीत सैन्य सशस्त्र अधिकरण की तरफ से कोई अपील नहीं है और सैन्य सशस्त्र अधिकरण सभी मामलों के लिए पहली और निर्णायक अदालत बन जाती है ।

‘‘वास्तव में, अब कोई अपीलीय उपचार नहीं है । सुप्रीम कोर्ट के पास भी कोई उपचार नहीं है। सैन्य सशस्त्र अधिकरण की धारा 31 सामान्य सार्वजनिक महत्व के कानून के बिन्दुओं को छोडकर सर्वाेच्च न्यायालय में कोई अपील नहीं करेगी, या यदि उच्चतम न्यायालय को ज्ञात होता है कि विवाद का विषय इतना विशेष है कि उसे सुनना चाहिए । इसलिए प्रचलित धारणा के विपरीत सैन्य सशस्त्र अधिकरण से कोई अपील नहीं की गई है और सैन्य सशस्त्र अधिकरण सभी मामलों के लिए पहला और निर्णायक अधिकरण बन गया ।’’

श्री कान्त शर्मा का निर्णय एल चन्द्र कुमार के निर्णय के विपरीत है इस सम्बन्ध में नवदीप सिंह कुछ नहीं बोलते हैं ।

‘‘अगर कोई नागरिक केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण में प्रकरण दायर करता है और वह एक मुकदमा हार जाता है तो वह उच्च न्यायालय में जा सकता है जो कि बहुत ही सुलभ और सस्ता उपचार प्रदान करता है । यदि वह फिर भी संतुष्ट नहीं होता है तो वह उच्चतम न्यायालय जा सकता है ।’’

‘‘हालांकि, सैन्य सशस्त्र अधिकरण के मामले में यदि कोई व्यक्ति किसी मामले को हार जाता है तो वह कहीं नहीं जा सकता है । यहां तक कि अगर वह सामान्य सार्वजनिक महत्व के कानून के बिन्दु की सीमा को पार करता है या उच्चतम न्यायालय को यह समझाने में सक्षम है कि इसमें एक असाधारण प्रश्न है तो सर्वाेच्च न्यायालय में उपाय एक आम आदमी के लिए पहुंच से बाहर है ।

एक विकलांग सैनिक के लिए यह बहुत मुश्किल है जो 1000/- रूपये की मासिक विकलांगता पेंशन के लिए लड रहा है या एक विधवा जो केरल या बंगाल में बैठकर पहले उच्चतम न्यायालय में एक अधिवक्ता को पैरवी करने के लिए और फिर उच्चतम न्यायालय को समझाने का प्रयास करती है कि मामला शामिल है ‘सामान्य सार्वजनिक महत्व के कानून का बिन्दु’ ।

इसलिए यह एक आपदा है कि यह न्याय को पहुंच के बाहर बनाता है और एल चन्द्र कुमार और अन्य मामलों में फैसले के पूरी तरह से विपरीत है ।’’

विकलांग सैनिकों के प्रति सरकार का रवैया

नवदीप सिंह रक्षा मंत्री द्वारा गठित मुकदमों की एक समिति का हिस्सा थे, जो रक्षा सेवाओं में मुकदमेबाजी और सेवा और पेंशन संबंधी नीति विवादों को हल करने के लिए थी । समिति ने 24 नवम्बर 2015 को अपनी सिफारिश दी और वर्तमान में केन्द्र द्वारा इस पर विचार किया जा रहा है । नवदीप सिंह सकारात्मक हैं और उनकी सिफारिशों से वांछित परिणाम प्राप्त होंगे।

नवदीप सिंह रक्षा मंत्री द्वारा गठित मुकदमों की एक समिति जो रक्षा सेवाओं में मुकदमेबाजी और सेवा और पेंशन संबंधी नीति विवादों को हल करने के लिए थी के सदस्य थे । समिति ने 24 नवम्बर 2015 को अपनी अनुशंसा दी और वर्तमान में केन्द्र द्वारा इस पर विचार किया जा रहा है । नवदीप सिंह सकारात्मक हैं कि उनकी अनुशंसा में वांछित परिणाम प्राप्त होंगे ।

‘‘मैं वास्तव में आशान्वित हूं क्योंकि रक्षा मंत्री और प्रधानमंत्री दोनों सैनिकों के खिलाफ मुकदमेबाजी को कम करने के लिए बहुत उत्सुक हैं । दिलचस्प बात यह है कि विधि सेन्टर फाॅर लीगल पाॅलिसी की एक रिपोर्ट थी, जिसके अनुसार सभी केन्द्र सरकार के विभागों द्वारा दर्ज की गई 1000 प्रत्यक्ष अपीलों में से 890 को रक्षा मंत्रालय द्वारा पेश किया गया था ।

और रक्षा मंत्रालय द्वारा पेश की गई 90 प्रतिशत से अधिक अपीलें विकलांग सैनिकों के खिलाफ थी । रक्षा मंत्रालय उच्चतम न्यायालय में दलीलों को रोक रहा था । इसी बीच में वर्तमान रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिंकर के आने के बाद अपीलों की संख्या कम हो गई, लेकिन पुनः शायद निहित स्वार्थी व्यक्ति हैं जो उच्चतम न्यायालय में मुकदमेबाजी को बढाना चाहते हैं ।’’

उनके विचार मे वर्दीधारी व्यक्तियों पर न्याय वितरण प्रणाली का इस्तेमाल ज्यादा किया जा रहा है

‘‘मैं गर्व के साथ कहता हूं कि भारतीय सेना अपराध की सेवा नहीं है, वे रक्षा सेवाएं हैं । मुझे यह भी लगता है कि सैन्य न्याय शक्तियों के पृथक्करण के संवैधानिक मानदण्डों के अनुरूप नहीं है। इसलिए, कुछ स्थितियों में सैनिकों को बहुत कठोर दण्ड मिलता है जिसके वे हकदार हैं ।

कभी-कभी, इस तथ्य के कारण मीडियों में बातों को उजागर किया जाता है या जनता पर प्रभाव डालने के लिए कि सैनिकों को भी दण्डित किया जाता है, उन्हें गैर फौजी पक्ष की ओर से मुकदमा चलाने की तुलना में बहुत कठोर दण्ड दिया जाता है । इसलिए मैं पूरी तरह से असहमत हूं जब लोग कहते हैं कि एक सभ्य व्यक्ति किसी भी बात से भाग सकते हैं और अपने आप मुक्त हो सकते हैं ।’’

विकलांग सैनिक व युद्ध विधवा वीरांगनाओ के कष्ट पर ना जीए

नवदीप सिंह की सैन्य समुदाय और उनके परिवारों के लिए चिंता स्पष्ट है ।

‘‘मैं केवल यह कहूंगा कि प्रणाली के सभी हितधारकों को यह समझना चाहिए कि हम वकील समुदाय या सरकार या किसी और को भी विकलांग सैनिकों और युद्ध में हुई विधवाओं के दुखों पर दुखी नहीं रहना चाहिए ।

वे पूरे सम्मान के लायक हैं और हम उन्हें मुकदमेबाजी के लिए मजबूर न करें । विकलांग सैनिकों या युद्ध में हुई विधवाओं के मामलों में मुकदमेबाजी कम सेे कम होनी चाहिए । उच्च न्यायालयों में उनके लिए सुलभ और किफायती उपचार उपलब्ध कराया जाना चाहिए ।’’

वह यह भी स्पष्ट करते हैं कि नियमों का अर्थ वास्तव में खलनायक है ।

‘‘आश्चर्यजनक पहलू यह है कि रक्षा मंत्रालय के नियम बहुत ही उदार और सरल प्रकृति वाले हैं । लेकिन कार्यकारी अधिकारियों द्वारा स्पष्टीकरण दूषित और पूरी तरह से अस्पष्ट हैं । वे नियमों की भावना के बजाय नियमों के शब्दों पर ही अडिग रहते हैं और यह एक वाद का कारण है ।’’

यह शर्म की बात है कि रक्षा मंत्रालय के अधिकांश मुकदमे विकलांग सैनिकों के खिलाफ हैं।

दुनिया भर में विकलांग सैनिकों को कानून और नियमों को लागू करने के लिए पर्याप्त संरक्षण और सम्मान और संवेदनशीलता प्रदान की जाती है, लेकिन भारत में यह विपरीत है । यह एक कडवा सच है और यह शर्म की बात है कि रक्षा मंत्रालय के अधिकांश मुकदमे विकलांग सैनिकों के खिलाफ हैं । रक्षा मंत्री और प्रधानमंत्री के उत्कृष्ट प्रयासों के बावजूद हालातों को नियंत्रण में नहीं लाया गया है ।

जीतने का अनुभव

नवदीप सिंह ने सैन्य कर्मचारियों, विकलांग सैनिकों और युद्ध में हुई विधवाओं के लिए कई मुकदमे लडे और जीते ।

उनके अनुसार यह अनुभव ‘‘बहुत संतोषजनक’’ है ।

‘‘यदि आप पेशे के प्रति ईमानदार हैं और यदि पेशे के प्रति लगन है और अपने साथी के प्रति सहानुभूति है तो यह एक अद्भुत पेशा है । यह एकमात्र पेशा है जहां आप समाज के लिए अत्याधुनिक स्तर पर काम कर सकते हैं ।

ऐसे मामलों को जीतना न केवल सैनिकों के लिए बल्कि अन्य नागरिकों के लिए भी जनहित से जुडे मामलों में यह पेशा बहुत संतोषजनक है ।

लेखक

नवदीप सिंह ने चार किताबें लिखी हैं । उनकी पहली किताब ‘‘फौज है मौज’’ जिसमें कि किताब का कम और चुटकुलों का संग्रह अधिक है । उनकी दूसरी पुस्तक ‘‘सोल्जर्स नो योर राईट्स’’ थी जिसमें कि वकील राजीव आनन्द सह लेखक थे तथा यह सैन्य समुदाय और उनके परिवारों के लिए उपलब्ध अधिकारों, लाभों और विशेषाधिकारों से संबंधित है । उन्होंने एक किताब ‘‘पेंशन इन दी डिफेंस सर्विसेज एण्ड मेम्ड वाई द सिस्टम’’ भी लिखी थी ।

‘चौथी किताब मेरे दिल के सबसे करीब है । इसमें लोगों की वास्तविक जीवन की कहानियां हैं - विकलांग सैनिक, युद्ध में हुई विधवाएं - जिन्हें व्यवस्था से लडना था । जब मैंने यह पुस्तक लिखी थी तो मुझे पूरी उम्मीद थी कि मुझे दोबारा ऐसी किताब नहीं लिखनी पडेगी । लेकिन मुझे लगता है कि मैं गलत था । हालात सुधर रहे हैं, लेकिन इसमें कुछ समय लगेगा।’’

Read more at

Related Stories

No stories found.
Hindi Bar & Bench
hindi.barandbench.com