डीएचसीबीए के नये अध्यक्ष कीर्ति उप्पल ने कहा कि बार में ‘‘मैं’’ कुछ नहीं होता यह ‘‘हम’’ होता है।

कीर्ति उप्पल अपनी पत्नी के साथ
कीर्ति उप्पल अपनी पत्नी के साथ

नये अध्यक्ष के रूप में उनकी योजनाएं और दिल्ली उच्च न्यायालय के साथ जुडे रहने के लम्बे अनुभव के बाद उनके पूर्व अनुभव के बारे में उन्होंने बार और बैंच से बार की राजनीति के सम्बन्ध में बात की ।

मैं इस बात से पूरी तरह खिलाफ हूं कि एक वकील जो वकालात नहीं कर रहा है और केवल वोट बैंक के उद्देश्य के लिए न्यायालय में आ रहा है । इसका कारण यह है कि जो अधिवक्ता दिल्ली उच्च न्यायालय में प्रतिदिन उपस्थित हो रहा है, वह शायद जानता है कि निर्वाचित होने के लिए कौन अधिक उपयुक्त व्यक्ति है ।

नलिनी शर्मा: आपने अध्यक्ष पद के लिए लडने का फैसला क्यों किया?

कीर्ति उप्पल: मेरा लम्बे समय से बार एसोसिएशन के साथ एक अहम हिस्सा रहा है और मेरा हमेशा से यही प्रयास रहा कि वकालत करने वाले अधिवक्ताओं को विशेष रूप से वापस लाया जाये। जब हम वकालात के व्यवसाय से जुडे, तो हमने देखा कि हमेशा एक पेशेवर अधिवक्ता ही बार का नेतृत्व करते थे । मुझे लगा कि इस प्रचलन को वापस लाना महत्वपूर्ण है ।

नलिनी शर्मा: चुनाव प्रचार की अवधि के दौरान, आप अन्य उम्मीद्वारों की तरह प्रचार करते हुए नजर नहीं आए?

कीर्ति उप्पल: (हंसते हुए) मुझे लगता है कि अगर आप एक पेशेवर अधिवक्ता हैं और लोग आपको नहीं जानते हैं, तो कुछ गडबड है । मुझे लगता है कि मेरे साथ के लोग बहुत ही दयालु थे। बहुत से लोगों ने इस वास्तविकता को पसन्द किया कि मैं व्यक्तिगत रूप से प्रचार करने से बचता हूं और मुझे लगा कि मेरी यही बात वोटों के रूप में परिवर्तित हो गई ।

नलिनी शर्मा: पूर्व अध्यक्ष द्वारा इस बारे में आरोप लगाए गए कि कैसे चुनावों में धांधली हुई थी और जिला अदालत के अधिवक्ताओं की बडी संख्या में वोट नहीं गिने गए थे । क्या इन आरोपों में कोई दम है?

कीर्ति उप्पल: यह बहस का एक बहुत बडा मुद्दा है । हमें एक बार-एक वोट के सिद्धान्त के लिए गहराई तक जाने की जरूरत है । इसके अलावा मेरे व्यक्तिगत विचार में एक बार-एक वोट के दौरान उन लोगों द्वारा कभी कोई तर्क नहीं दिया गया था जो अब बेईमानी करके दुखी हो रहे हैं । काफी अधिवक्ता ऐसे हैं जो दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष बहुत बार उपस्थित होते हैं, भले ही वे वकालत करते हों परन्तु उनके लिए कोई नहीं बोला।

मैं इस बात से पूरी तरह खिलाफ हूं कि एक वकील जो वकालात नहीं कर रहा है और केवल वोट बैंक के उद्देश्य के लिए न्यायालय में आ रहा है । इसका कारण यह है कि जो अधिवक्ता दिल्ली उच्च न्यायालय में प्रतिदिन उपस्थित हो रहा है, वह शायद जानता है कि निर्वाचित होने के लिए कौन अधिक उपयुक्त व्यक्ति है ।

हम न्यायाधीशों को अत्यन्त सम्मान देना चाहते हैं और बदले में हम भी यही उम्मीद करते हैं। मैं लगभग 30 वर्षाें से वकालत का कार्य कर रहा हूं और कहीं न कहीं एक अधिवक्ता और मतदाता के रूप में मैंने हमेशा यही महसूस किया है कि पिछले 15-20 सालों में अधिवक्ता के सम्मान में गिरावट आई है । मैं यह नहीं जानना चाहता कि इन सब बातों के लिए कौन जिम्मेदार है, लेकिन मैं एक अधिवक्ता के कद को बढाना चाहूंगा, जिसे हम खो चुके हैं । हमारी गरिमा को वापस लाने की जरूरत है ।

नलिनी शर्मा: बार एसोसिएशन के कामकाज में बदलाने लाने के सम्बन्ध में आपकी क्या योजना है?

कीर्ति उप्पल: पहली और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यहां सिर्फ ‘‘मैं’’ ही नहीं यहां ‘‘हम’’ हैं । यह हमेशा से मेरा उद्देश्य रहा है और अब तक हम इसे बनाये रखने में सफल रहे हैं।

हम हर वकालत करने वाले अधिवक्ता को विशेष पक्ष में शामिल करना चाहते हैं । लम्बे समय तक उन्हें नजरअंदाज और दरकिनार किया गया अब उन्हें वापस लाने का समय है ।

बहुत सारी चीजें हैं जिनमें हम सभी वरिष्ठ और जूनियर, सभी को एक साथ शामिल करने की योजना बना रहे हैं । यह सिर्फ अध्यक्ष और महासचिव की बार नहीं है । यह उन सभी लोगों की बार है जो उच्च न्यायालय का एक अहम हिस्सा है । हम इसी दिशा में काम करेंगे ।

नलिनी शर्मा: दिल्ली उच्च न्यायालय की उन्नति के बारे में क्या कहना है?

कीर्ति उप्पल: मैं रजिस्ट्री के सम्पर्क से बाहर रहा हूं क्योंकि मेरा फाईल प्रस्तुतिकरण का काम नहीं है लेकिन कुछ ऐसे लोग हैं जिन्होंने इस बारे में मुझसे बहुत सारी शिकायतें की हैं। हमारी योजना सभी न्यायाधीशों के साथ विचार-विमर्श करने और ऐसे मुद्दों का समाधान खोजने की है

नलिनी शर्मा: अन्ततः, क्या आपको लगता है कि बार एसोसिएशन के साथ आपकी भागीदारी और वर्षाें से की गई राजनीति आपके कार्यकाल के दौरान मदद करेगी ।

कीर्ति उप्पल: भगवान मुझ पर बहुत महरबान रहे हैं । मैं राजनीतिक और आर्थिक रूप से एक बहुत सुदृढ परिवार से था जब मैं वकालत की पढाई कर रहा था तब हमने एक समय ऐसा भी देखा जब हमारे पास दो वक़्त के भोजन की व्यवस्था भी नहीं होती थी । जब मैं बार एसोसिएशन में शामिल हुआ तो मैं डीटीसी की बस से यात्रा करता था और पहली पीढी का अधिवक्ता होने की वजह से तथा पैसों की तंगी होने की वजह से मुझे बहुत सी परेशानियों का सामना करना पडा । मैं इन समस्याओं को समझता हूं ।

मैं श्री खोसला का प्रशंसक बन गया क्योंकि उनके आदर्श वाक्यों ने मेरे दिल काू छू लिया था जब मैं कुछ भी नहीं था । लेकिन तब मुझे महसूस हुआ कि पिछले 30 सालों से वो यही काम कर रहे हैं । कुछ भी नहीं बदला । अध्यक्ष के बाद उनके अध्यक्ष बनने के अलावा उनमें कोई अन्य परिवर्तन नहीं हुआ । जो मैं भी अपने कार्यकाल के दौरान लाना चाहता हूं, जो ईश्वर की इच्छा होगी वही होगा ।

इस साक्षात्कार में व्यक्त किये गये विचार, कीर्ति उप्पल, वरिष्ठ अधिवक्ता और दिल्ली उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष के हैं । बार और बैंच उपरोक्त साक्षात्कार के लिए ना तो उत्तरदायी हैं और ना ही पुष्टि करते हैं ।

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