उच्चतम न्यायालय द्वारा सबरीमाला निर्णय में भारतीयों के बीच एक से अधिक पहलुओं पर विचार विमर्श को प्रेरित किया है । सबरीमाला मामले में याचिकाकर्ता कौन थे इस तथ्य के सम्बन्ध में उनके बारे में बहुत कुछ लिखा गया एवं कहा गया है ।
भारतीय युवा अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष जो कि एक मुस्लिम व्यक्ति हैं वह उपरोक्त मामले में प्रमुख याचिकाकर्ता के रूप में उपस्थित हुए । इसके परिणामस्वरूप इस मामले को राजनीतिक रंग दिया गया, विशेष तौर पर केरल राज्य में ।
याचिका प्रेरित थी और मुस्लिम समुदाय के सदस्यों द्वारा हिन्दू रीति रिवाजों का अपमान करने के उद्देश्य दाखिल की गई थी ।
बार और बैंच निम्न मुद्दों की जांच करने का फैसला किया - उक्त याचिका किसने दायर की? याचिका को पेश करने के लिए किसके द्वारा कहा गया? उक्त याचिका पर फैसला क्या है?
इस मामले में भारतीय युवा अधिवक्ता संघ के अलावा अन्य और व्यक्ति भी याचिकाकर्ता के रूप में थे । सुप्रीम कोर्ट की वेबसाईट के अनुसार, भक्ति पसरीजासेठी (चित्रित बांए), जो भारतीय युवा अधिवक्ता संघ के महासचिव हैं, साथ ही लक्ष्मीश्री, प्रेरणा कुमारी (चित्रित दांए), आलोक शर्मा और सुधा पाल को याचिकाकर्ताओं के रूप में शामिल किया गया है ।
मैं कुछ फोन काॅल के बाद प्रेरणा कुमारी के साथ बैठक की व्यवस्था करने में सक्षम था । मेरी किस्मत के अनुसार भक्ति पसरीजा सेठी और प्रेरणा कुमारी के साथ मुझे बात करने का मौका मिला।
उक्त याचिका किस तथ्य के सम्बन्ध में प्रस्तुत की गई?
सेठी और कुमारी को कुछ मीडिया रिपोर्टाें के माध्यम से वर्ष 2006 में पता चला - विशेष रूप से बरखा दत्त का एक लेख है कि सबरीमाला में एक शुद्धिकरण समारोह आयोजित किया गया था? जिसका कारण एक अभिनेत्री जयमाला द्वारा मन्दिर में प्रवेश किया गया ।
‘‘मंदिर में पुजारियों ने मन्दिर का शुद्धिकरण किया क्योंकि मासिक धर्म में महिलाओं को अन्दर जाने की अनुमति नहीं है । भक्ति सेठी, जो भारतीय युवा अधिवक्ता संघ की महासचिव थी तथा मेरे सहित अन्य व्यक्तिगत याचिकाकर्तागण ने इस तथ्य पर चर्चा की और उक्त याचिका को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने का फैसला किया गया।’’
सेठी अपने तथ्यों में उक्त बात को ही कहती है ।
‘‘जब मैंने शुद्धिकरण समारोह की खबर के बारे में पढा, तो मुझे लगा कि यह बहुत ही अपमानजनक है । इस तरह उसने मुझे प्रेरित किया । मैंने यह महसूस किया कि इसमें सुधार की जरूरत है। मैंने इस मामले में रवि प्रकाश गुप्ता जो कि इस मामले में भारतीय युवा अधिवक्ता संघ की तरफ से पैरवी करने गये थे । तत्पश्चात् हमने उपरोक्त मामले पर अन्य
याचिकाकर्ताओं से चर्चा की और उक्त याचिका दायर करने का फैसला लिया । इस तरह उक्त याचिका दायर की गई ।’’
कितने याचिकाकर्तागण द्वारा याचिका प्रस्तुत की गई?
‘भारतीय युवा अधिवक्ता संघ की तरफ से मैं और भक्ति सेठी तथा अन्य याचिकाकर्ता लक्ष्मी शास्त्री, सुधा पाल एवं अल्का शर्मा थे । भक्ति प्रसार भारतीय युवा अधिवक्ता संघ के महासचिव थे तथा अन्य व्यक्तिगत याचिकाकर्ता थे।’’ कुमारी रीकाल्स
‘‘हम किसी व्यक्ति की भावना को ठेस नहीं पहुंचाना चाहते थे। ऐसा नहीं था कि हम किसी के विश्वास या धार्मिक प्रथा को ठेस नहीं पहुंचाना चाहते थे और ना ही किसी की भावना को आहत करना चाहते थे । हमने महसूस किया कि सबरीमाला में जो हो रहा था वह गलत था और इस मुद्दे पर चर्चा आवश्यक थी ।’’
आखिर वही हुआ जो होना था । उच्चतम न्यायालय ने सभी पक्षकारों को सुना और इस मामले से सम्बन्धित सभी पक्षकारों को अवसर दिया जो इस विषय के सम्बन्ध में अपना पक्ष रखना चाहते है ।
हालांकि, याचिका प्रस्तुत होने के पश्चात् प्रेरणा कुमारी का मन बदल गया।
‘‘जब मैंने इस मामले में याचिका दायर की तो मुझे इस मामले के तथ्यों की पूरी जानकारी नहीं थी । इसके अलावा मैं केरल से नहीं हूं । न्यायाधिपति इन्दु मल्होत्रा ने भी कहा है कि कोई भी याचिकाकर्ता केरल का नहीं है अतः याचिकाकर्ता उपरोक्त मामले की वास्तविक परिस्थिति नहीं बता सकते ।
मुझे लगता है कि उपरोक्त तथ्य सही है क्योंकि मैंने महिला भक्त का पत्र मिलने के पश्चात् मैंने मुकदमा प्र्रस्तुत किया । उक्त भक्त ने मुझे बताया कि केरल में कई अयप्पा भगवान मन्दिर हैं जहां महिलाओं को प्रवेश करने पूजा करने की अनुुमति है ।
इसके अलावा केरल में महिला पुजारी भी हैं । महत्वपूर्ण रूप से, उसने बताया कि केरल की महिलाएं खुद मन्दिर में प्रवेश करने में रूचि नहीं ले रही हैं, इसलिए मैं उनके लिए क्यों पहल कर रही थी?
मैंने तब कुछ अध्ययन कर महसूस किया कि मैं अनजाने में वहां के भक्तों की भावनाओं को ठेस पहुंचा रहा हूं । मुझे अहसास हुआ कि मैं गलत था तथा बाद में मुझे कई तथ्यों के बारे में पता चला ।
तो कुमारी ने क्या किया?
‘‘मैंने अपनी उक्त याचिका वापस लेने का प्रयास किया परन्तु उच्चतम न्यायालय द्वारा उक्त मामले को पहले ही अभिग्रहित कर लिया गया था ।’’
तब भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने भी खुली अदालत में टिप्पणी की कि न्यायालय उक्त मामले की सुनवाई करेगा भले ही याचिकाकर्तागण अपनी याचिकाएं वापस ले लें क्योंकि यह एक जनहित याचिका थी ।
दोस्तों के बीच मतभेद
हालांकि, सेठी अपनी याचिका के सम्बन्ध में अडिग रही। उन्होंने कहा कि यह मुद्दा मेरी स्वयं की आस्था के बारे में था बल्कि इसमें महिलाओं की गरिमा और सम्मान का एक बडा मुद्दा शामिल था ।
‘‘मैंने पाया कि इसने महिलाओं की गरिमा को चोट पहुंचाई है । यदि कोई महिला इतनी अधिक संख्या में प्रवेश करती हैं तो शुद्धिकरण कैसे किया जा सकता है?‘’
प्रेरणा ने इस तथ्य को सामने रखा कि केरल की महिलाएं इस सम्बन्ध में क्या सोच रही हैं लेकिन मैं एक बडी सोच के साथ जाना पसन्द करती हूं । मुझे लगता है कि वहां (केरल में) इस आदेश का महिलाएं भी सम्मान करेंगी । जाहिर है, क्योंकि यह केवल
धार्मिक आस्था के बारे में नहीं है बल्कि यह कुछ और बारे में है, यह महिलाओं की गरिमा के सम्बन्ध में है ।
जब एक सामाजिक सुधार की आवश्यकता होती है तो होनी भी चाहिए । पहले के भी उदाहरण हैं जैसे सती, देवदासी आदि, जिन्हें जाना आवश्यक था । महिलाओं को अनेकों बार कई बातों पर विश्वास करने के लिए मजबूर किया जाता है - ‘यह गलत है वह गलत है’। महिलाओं को एक विशेष तरीके से सोचने के लिए प्रतिबन्धित किया जाता है। अब इस मामले के सम्बन्ध में कम से कम बातें जानबूझकर की गई हैं।
इसलिए, सेठी उक्त निर्णय का स्वागत कर रहे हैं और कहते हैं कि वह खुश हैं।
‘‘मैं इस निर्णय का स्वागत करता हूं और मैं अभी भी अपने उसी मुद्दे के साथ खडा हूं जो मैं उक्त याचिका दायर करते समय उठाया था - कि यह प्रथा महिलाओं के गरिमा एवं सम्मान के खिलाफ थी । मुझे खुशी है (कि यह फैसला आया)।’’
हालांकि, कुमारी ने स्पष्ट किया कि वह न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा की असहमतिपूर्ण राय से सहमत हैं ।
‘‘मैं इस माननीय न्यायालय के फैसले का आदर करता हूं । यह एक ऐतिहासिक निर्णय है और बहुसंख्यक राय के विभिन्न पहलुओं का महिला के अधिकारों से सम्बन्धित विभिन्न मुद्दों पर प्रभाव पडेगा । हालांकि इस मामले में, मुद्दा आस्था के बारे में था । जब मैंने इस मामले में याचिका दायर की, तब मुझे इस मामले के तथ्यों की पूरी जानकारी नहीं थी।
हालांकि बाद में मुझे पता चला कि यह एक प्रचलन था जो इस मन्दिर विशेष के लिए केन्द्रित है । जैसा कि न्यायाधिपति इन्दु मल्होत्रा ने कहा, आस्था के मामलों में, लोगों को यह जानने का अधिकार है कि यह युक्तिपूर्ण है या नहीं।
जब जीवन में उक्त मुद्दों की बात आती है, तो इसे जननांग विकृति इत्यादि कहा जाता है, यह पूरी तरह से एक अलग मामला है और इस मामले में न्यायालय का दखल जरूरी है। लेकिन इस मामले में यह एक विशेष आस्था के बारे में था जो हानिरहित था।’’
इस बिन्दु पर सेठी बीच में रूकावट डालते हैं ।
‘‘अगर कुछ धार्मिक विश्वास कोर मूल्यों/गरिमा को मारते हैं, तो इसे जाना होगा । धार्मिक प्रथा के नाम पर देवदासी प्रथा भी थी । उसके नाम पर क्या चल रहा था? सबरीमाला में हमने भेदभाव को चुनौती दी ना कि धार्मिक प्रथा को।’’
यह स्पष्ट है कि इस मुद्दे पर दोनों दोस्तों के बीच बहुत मतभेद हैं ।
मैं केरल राज्य और इस मोड पर शामिल राजनीति के उद्देश्य को सामने लाने का विनिश्चय करती हूं ।
राजनीति और आस्था
सेठी ने शुरू में कहा कि वह इस मुद्दे पर टिप्पणी नहीं करना चाहती ।
‘‘यह उन पर निर्भर है, मैं उन पर टिप्पणी नहीं करना चाहूंगी।’’
लेकिन कुमारी इसके बारे में बात करने को तैयार नहीं है ।
‘‘मैं उस पर टिप्पणी करना चाहूंगी । मैं सोच रही थी कि उन्होंने ऐसा क्यों किया । केरल के एक व्यक्ति ने मुझसे पूछा कि यहां बहुत संख्या में भगवान अय्यपा के मन्दिर हैं जहां महिलाएं प्रवेश कर सकती हैं, परन्तु इस मन्दिर को ही मुद्दा क्यों बनाया जा रहा है।’’
मुझे नहीं पता क्यों । राज्य सरकार ने तीन या चार बार अपना रूख बदला । इससे यह स्पष्ट होता है कि यह मुद्दा धर्म से कहीं उपर है, इसलिए इस मामले को राजनीतिक रूप दिया जा रहा था और मैंने महसूस किया कि उक्त प्रकरण के सम्बन्ध में मैं गलत था ।
इससे सेठी को मुद्दा प्रकट करने मौका मिलता है ।
‘‘मुझे नहीं लगता कि यह एक राजनीतिक रूप से जुडा हुआ मामला था । यह अच्छा है कि केरल सरकार ने महिलाओं को अनुमति देने के लिए कदम उठाया है । अगर कोई महिलाओं को सशक्त करने की कोशिश कर रहा है, तो इसे राजनीतिक रंग नहीं दिया जा सकता । यह बहुत अच्छा है अगर केरल सरकार या कोई भी इस तरह के मुद्दों पर महिलाओं का समर्थन करता है, मैं उनका आभार व्यक्त करता हूं ।’’
सभी महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण
इससे पहले कि कोई महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण न दिया जाए मैं उक्त मामले को समापन करने का निश्चय करता हूं । एक मुस्लिम व्यक्ति भारतीय युवा अधिवक्ता संघ का नेतृत्व कर रहा है और आरोप लगाया गया है कि याचिका अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा निहित स्वार्थाें के साथ दायर की गई थी ।
चूंकि सेठी भारतीय युवा अधिवक्ता संघ का एक पदाधिकारी है, मैं उससे सफाई चाहती हूं।
हालांकि, इस बार सेठी और कुमारी दोनों इन दावों को खारिज करने में निरपेक्ष हैं।
‘‘याचिका का नौशाद से कोई लेना देना नहीं था । इस मामले में उनका व्यक्तिगत रूप से कोई लेना देना नहीं था । मैं संघ का महासचिव था । यह याचिका मेरे और रवि प्रकाश गुप्ता जी की ओर से प्रस्तुत की गई थी । हमने सिर्फ नौशाद को सूचित किया
कि हम उक्त याचिका को प्रस्तुत कर रहे हैं । इसके सिवाय इस मामले से इनका कोई लेना देना नहीं था ।
लोग इसे अन्य तरीकों से पेश कर रहे हैं जो कि गलत है । यह हमारी याचिका थी और वह व्यक्ति (नौशाद) का इससे कोई सम्बन्ध नहीं था । मुझे नहीं पता कि लोग ऐसी बातों को कहां से मानते हैं । यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है’’, सेठी कहते हैं ।
और कुमारी सहमत हैं ।
‘‘वह बहुत सही है और यह वही व्यक्ति हैं जिन्होंने मामले की शुरूआत की थी तथा नौशाद का इस मामले से कोई सम्बन्ध नहीं था ।’’