
इलाहाबाद उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन ने आज कार्य से विरत रहने का निर्णय लिया है। एसोसिएशन ने इस बात पर चिंता व्यक्त की है कि उच्च न्यायालय में स्वीकृत 160 न्यायाधीशों के स्थान पर केवल 79 न्यायाधीश कार्यरत हैं।
24 फरवरी को अध्यक्ष एवं वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल तिवारी की अध्यक्षता में सचिव विक्रांत पांडेय के साथ निकाय की आपातकालीन बैठक हुई। सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि न्यायाधीशों की अपर्याप्त संख्या को देखते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अधिवक्ता 25 फरवरी को न्यायिक कार्य से विरत रहेंगे।
पत्र में उल्लेख किया गया है कि 22 फरवरी को बार एसोसिएशन द्वारा उठाई गई दो मांगों में से एक - अधिवक्ता अधिनियम में प्रस्तावित संशोधनों पर पुनर्विचार - को केंद्र सरकार ने स्वीकार कर लिया है
हालांकि, रिक्त न्यायिक पदों के संबंध में उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन की दूसरी मांग पर अभी तक विचार नहीं किया गया है।
उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को संबोधित पत्र में कहा गया है, "ऐसी स्थिति में न्यायिक स्वतंत्रता प्रभावित होना स्वाभाविक है।
पिछले महीने बार एंड बेंच ने इसी मुद्दे पर प्रकाश डालते हुए एक विस्तृत विश्लेषण प्रकाशित किया था।
25 फरवरी तक उच्च न्यायालय में 10,99,027 मामले लंबित होने के बावजूद, इन रिक्तियों को युद्ध स्तर पर भरने के लिए बहुत कुछ नहीं किया गया है।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता जताई और इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित मामलों की संख्या पर ध्यान दिया। कोर्ट ने कहा कि खाली पड़े जजों के पदों को भरने के लिए तत्काल कदम उठाए जाने की जरूरत है।
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला ने कहा, "पिछले एक महीने में, हमें कई याचिकाएं देखने को मिली हैं, जिनकी कार्यवाही तीन दशकों से इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लंबित है...ऐसा प्रतीत होता है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय मुकदमेबाजी से भर गया है। हमें बताया गया है कि प्रत्येक न्यायाधीश के पास 15-20 हजार मामले हैं। उच्च न्यायालय (79) न्यायाधीशों के साथ काम कर रहा है; इसका मतलब है कि इसमें 50 प्रतिशत रिक्तियां हैं। मुक़दमेबाज़ इंतज़ार कर रहे हैं...इसका एकमात्र उपाय है कि रिक्तियों को भरने के लिए कदम उठाए जाएं, योग्यता के आधार पर उम्मीदवारों की सिफारिश की जाए।"
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Allahabad lawyers to abstain from judicial work to protest shortage of judges