
तमिलनाडु, केरल और पश्चिम बंगाल राज्यों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) को लागू करने की मांग को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है।
यह जनहित याचिका हिंदी थोपने की बहस और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बयान की पृष्ठभूमि में आई है, जिसमें उन्होंने राज्य में एनईपी के तीन-भाषा फॉर्मूले के कार्यान्वयन का विरोध किया है।
दिलचस्प बात यह है कि शीर्ष अदालत के समक्ष जनहित याचिका अधिवक्ता जीएस मणि द्वारा दायर की गई है, जो खुद तमिलनाडु से हैं।
तमिलनाडु के स्कूलों में बच्चों को केवल अंग्रेजी और तमिल पढ़ाई जाती है।
राज्य सरकार ने कहा है कि केंद्र सरकार एनईपी के माध्यम से हिंदी थोपने की योजना बना रही है।
जनहित याचिका के अनुसार, स्टालिन का दृष्टिकोण गलत, मनमाना, राजनीति से प्रेरित है और मुफ्त तथा प्रभावी शिक्षा के मौलिक अधिकार के विरुद्ध है।
मणि ने दलील दी है, "हालांकि इस माननीय न्यायालय के पास आम तौर पर किसी राज्य सरकार को नीति स्वीकार करने और आधिकारिक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य करने का प्रत्यक्ष अधिकार नहीं है। हालांकि, संवैधानिक प्रावधानों या कानूनों के उल्लंघन के मामलों में राज्य सरकार को आदेश जारी करने का अधिकार है और कुछ परिस्थितियों में उन निर्देशों के कारण राज्य सरकार को कुछ कार्रवाई करने के लिए बाध्य होना पड़ सकता है।"
याचिका में कहा गया है कि राज्यों का संवैधानिक और कानूनी दायित्व है कि वे एनईपी को लागू करें और इसके लिए सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करें।
मणि ने यह भी तर्क दिया है कि नीति में राज्यों में हिंदी लागू करने के बारे में कुछ भी उल्लेख नहीं किया गया है।
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Amid Hindi debate, TN lawyer moves Supreme Court for National Education Policy in TN, Kerala, WB