जम्मू एवं कश्मीर तथा लद्दाख उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि आपराधिक मामलों में आरोपी व्यक्तियों की जमानत याचिकाओं पर राज्य को लिखित आपत्तियां दर्ज करने का अवसर प्रदान करने की कोई कानूनी आवश्यकता नहीं है। [गोरव स्याल बनाम जम्मू एवं कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश]
न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन ने यह भी कहा कि जमानत आवेदनों पर आदर्श रूप से केस डायरी की विषय-वस्तु के आधार पर पहली सुनवाई की तारीख पर ही निर्णय ले लिया जाना चाहिए।
न्यायालय ने कहा, "जमानत याचिका में राज्य को लिखित आपत्तियां दर्ज करने का अवसर देने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि कानून के तहत ऐसा करना अनिवार्य नहीं है। इसकी आवश्यकता केवल उन मामलों में हो सकती है जहां विशेष कानून में इसकी विशेष रूप से आवश्यकता हो।"
तदनुसार, न्यायालय ने महाधिवक्ता (एजी) कार्यालय को एक सामान्य निर्देश जारी किया कि जब भी कोई जमानत आवेदन दायर किया जाता है और उसकी प्रति उसे प्राप्त होती है, तो पुलिस स्टेशन से उचित केस डायरी तुरंत मंगवाई जानी चाहिए।
न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि जमानत आवेदनों पर केस डायरी में मौजूद सामग्री के आधार पर निर्णय लिया जाना चाहिए।
न्यायालय ने कहा, "यदि यही प्रक्रिया अपनाई जाती है, तो उच्च न्यायालय द्वारा जमानत आवेदनों पर निर्णय लेने में कोई देरी नहीं होनी चाहिए।"
अदालत ने मार्च 2022 के बलात्कार के एक मामले में आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया।
अक्टूबर 2022 में गिरफ्तार किए गए आरोपी ने दिसंबर 2022 में जमानत के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
आरोपी द्वारा जेल में बिताई गई अवधि और एफआईआर में छह महीने की देरी को देखते हुए अदालत ने आरोपी को जमानत दे दी।
इसने आरोपी को राहत देते हुए इस तथ्य को भी ध्यान में रखा कि मामले में आरोप पत्र दाखिल किया जा चुका है।
अभियुक्त की ओर से अधिवक्ता सिद्धांत गुप्ता ने पैरवी की।
सरकारी अधिवक्ता भानु जसरोटिया केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर की ओर से पेश हुए।
अभियोक्ता की ओर से अधिवक्ता अमन भगोत्रा पेश हुए।
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