बंबई उच्च न्यायालय ने 2018 के आत्महत्या के लिये उकसाने के मामले के सिलसिले में अपनी गिरफ्तारी के मद्देनजर रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्णब गोस्वामी द्वारा दायर बंदी प्र्रत्यक्षीकरण याचिका पर आज नोटिस जारी किया।
न्यायमूर्ति एसएस शिन्दे और न्यायमूर्ति एमएस कार्णिक की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की।
उच्च न्यायालय में गोस्वामी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता आबाद पोन्डा ने कहा कि वह अंतरिम राहत पर जोर देना चाहते हैं जिसमें 2018 में दर्ज प्राथमिकी की जांच पर रोक भी शामिल है।
न्यायालय ने इस पर कहा कि वह प्रतिवादियों को नोटिस जारी किये बगैर अंतरिम राहत देने की इच्छुक नही है। न्यायालय ने जब इस मामले में नोटिस जारी करने की इच्छा व्यक्त की तो पोन्डा ने ‘सात मिनट’ का समय यह दर्शाने के लिये मांगा कि अंतरिम दिया जाना क्यों जरूरी है।
उन्होंने दावा किया कि पुलिस ने 2018 के इस मामले की जांच बगैर किसी न्यायिक आदेश के शुरू की थी।
पीठ ने जब एक बार फिर कहा कि वह दूसरा पक्ष भी सुनना चाहती है तो पोन्डा ने कहा,
‘‘इसे कल के लिये सूचीबद्ध कर दीजिये क्योंकि प्रत्येक दिन हिरासत में रखना गैरकानूनी होता जा रहा है। शिकायतकर्ता एक बंद हो चुके मामले को दुबारा शुरू कराने का प्रयास कर रहा है। मैंने अलीबाग अदालत से जमानत की अर्जी वापस ले ली क्योंकि अदालत ने कहा कि हम सामान्य प्रक्रिया में सुनेंगे।’’
न्यायालय ने टिप्पणी की,
‘‘दूसरे वादकारी भी हैं। मामले लंबित हैं। हम सुनने के लिये तैयार है लेकिन हमें यह भी ध्यान में रखना होगा कि हमने नोटिस जारी नहीं किया है, प्रतिवादियों को जवाब देने का अवसर मिलना चाहिए।’’
वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने तब पोन्डा की दलीलों को आगे बढ़ाया। उन्होंने कहा,
‘‘क्या महाराष्ट्र पर आसमान गिर पड़ेगा अगर उसे (गोस्वामी) को अंतरिम पर रिहा किया गया?’’
पोन्डा ने कहाकि शिकायतकर्ताओं ने फिर से जांच की मांग की है लेकिन उन्होंने स्वीकार किया है कि पहले मामला बंद करने का आदेश निरस्त करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि पुलिस मजिस्ट्रेट के आदेश को अपने हिसाब से उलटने का प्रयास करके दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 362 के अंतर्गत काम कर रही है। यह प्रावधान कहता है कि कोई भी अदालत किसी मामले में फैसले या उसके निस्तारण के अंतिम आदेश में लिपिकीय या अंकीय त्रुटि सुधार के अलावा किसी तरह का कोई बदलाव या समीक्षा नहीं करेगी।
पीठ ने इस पर कहा कि वह किसी प्रकार की राहत देने से पहले शिकायतकर्ता- अक्षता नायक- को सुनना चाहेगी। उसने पोन्डा को अपनी याचिका में संशोधन कर सूचना देने वाले को भी प्रतिवादी बनाने की अनुमति दी।
न्यायालय ने अंतत: सभी प्रतिवादियों को नोटिस जारी किये और उनसे आपस में अपनी प्लीडिंग्स का आदान प्रदान करने का निर्देश दिया। इस मामले मे कल अपराह्न तीन बजे अब सुनवाई होगी।
अर्णब गोस्वामी ने बंबई उच्च न्यायालय में दायर अपनी याचिका में अलीबाग थाने में 2018 में दर्ज प्राथमिकी संख्या 59 में जांच पर तत्काल अंतरिम रोक लगाने का अनुरोध किया है। इसमे उन पर इंटीरियर डिजायनर अन्वय नायक को आत्महत्या के लिये उकसाने का आरोप लगाया गया है।
यह मामला 2018 में अन्वया नायक की पत्नी अक्षता नायक द्वारा अर्णब और दो अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने से शुरू हुआ। इस प्राथमिकी में ये सभी कांकर्ड डिजायंस प्रा लि के निदेशक नायक और उसकी मां को आत्महत्या के लिये उकसाने के आरोपी थे। अन्वय नायक ने कथित रूप से आत्महत्या के बारे में एक नोट छोड़ा था जिसमें उसने कहा था कि गोस्वामी और एआरजी आउटलायर (रिपब्लिक टीवी की मूल कंपनी) पर उसका कथित रूप से 83 लाख रूपए बकाया होने की वजह से सीडीपीएल वित्तीय संकट में है।
गोस्वामी ने अपनी याचिका में यह भी कहा है कि 2018 की प्राथमिकी मुंबई पुलिस ने 2019 में ‘ए’ सारांश रिपोर्ट दाखिल करने और अलीबाग के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा स्वीकार करने के बाद बंद कर दी थी।
उन्होंने यह भी दावा किया कि महाराष्ट्र में सत्तासीन राजनीतिक लोगों के व्यक्तिगत वैमनस्य और प्रतिशोध की वजह से और राज्य सरकार के सोशल मीडिया हैंण्डल पर अन्वय की पत्नी द्वारा जारी वीडियो प्रसारित होने के आधार पर मुंबई के पुलिस आयुक्त ने यह जांच फिर से शुरू की है।
इस पत्रकार ने याचिका में आगे दावा किया है कि मुंबई पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार करने से पहले उन्हें और उनके परिवार के सदस्यों को शारीरिक रूप से उत्पीड़ित किया। उन्होंने दावा किया यह उनके स्वतंत्रा और गरिमा के अधिकार का खुल्लमखुल्ला हनन है।
महाराष्ट्र पुलिस ने गोस्वामी को 4 नवंबर को भोर पहर में 2018 के आत्महत्या के लिये उकसाने के मामले में कथित संलिप्तता के आरोप में गिरफ्तार किया था।
बाद में उन्हें मुंबई की एक अदालत ने दो हफ्ते की न्यायिक हिरासत में भेज दिया
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