क्या पुलिस बिना वकील के आरोपी से पूछताछ कर सकती है? सुप्रीम कोर्ट करेगा विचार

न्यायालय ने एक जनहित याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा है, जिसमें हिरासत में और हिरासत से पहले पूछताछ के दौरान कानूनी सलाहकार की उपस्थिति को एक गारंटीकृत अधिकार बनाने की मांग की गई है।
Police Interrogation
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सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को केंद्र सरकार से एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर जवाब मांगा, जिसमें पुलिस द्वारा किसी व्यक्ति से पूछताछ किए जाने के दौरान वकील की उपस्थिति के अधिकार को मान्यता देने की मांग की गई है [शफी माथेर बनाम भारत संघ एवं अन्य]।

भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें हिरासत में पूछताछ के दौरान और हिरासत से पहले पूछताछ के दौरान कानूनी वकील की उपस्थिति के अधिकार को मान्यता देने की मांग की गई है।

CJI BR Gavai and Justice K Vinod Chandran
CJI BR Gavai and Justice K Vinod Chandran

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि पूछताछ के दौरान वकील को अनुमति न देने की प्रथा ने ज़बरदस्ती का माहौल पैदा किया है और आत्म-दोषसिद्धि के विरुद्ध संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन किया है।

जनहित याचिका में माँगी गई राहत की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि माँग विशेष व्यवहार की नहीं, बल्कि मौजूदा संवैधानिक सुरक्षा उपायों के क्रियान्वयन की है।

गुरुस्वामी ने तर्क दिया, "यदि किसी आरोपी या गवाह को हिरासत में जाँच के लिए बुलाया जाता है, तो उसके साथ वकील ले जाने का कोई अधिकार नहीं है। मैं केवल आत्म-दोषसिद्धि को रोकने के लिए वकील की उपस्थिति की माँग कर रही हूँ। मैं केवल संवैधानिक प्रावधान के क्रियान्वयन की माँग कर रही हूँ।"

उन्होंने आगे कहा कि यह याचिका उन अधिवक्ताओं द्वारा दायर की गई है जिन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के निष्कर्षों सहित, जबरन गवाही देने की घटनाओं का दस्तावेजीकरण करने वाली रिपोर्टें संलग्न की हैं।

गुरुस्वामी ने कहा, "यह वकीलों द्वारा दायर एक जनहित याचिका है। हमने ऐसी रिपोर्टें संलग्न की हैं जो ठोस साक्ष्य प्रस्तुत करती हैं। हम केवल अनुच्छेद 20(3) के क्रियान्वयन की मांग कर रहे हैं। 2019 में एनएचआरसी ने कई ऐसे मामले देखे जिनमें यातना का इस्तेमाल किया गया था।"

Menaka Guruswamy
Menaka Guruswamy

जनहित याचिका में पूछताछ के दौरान वकीलों को अनुमति देने के टुकड़ों-टुकड़ों और विवेकाधीन दृष्टिकोण को चुनौती दी गई है। इसमें कहा गया है कि यह संविधान के अनुच्छेद 20(3) (आत्म-दोषसिद्धि के विरुद्ध अधिकार), 21 (जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा) और 22(1) (अपनी पसंद के वकील से परामर्श और बचाव का अधिकार) का उल्लंघन करता है।

याचिका में कहा गया है कि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 41डी और नई भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 में इसके समकक्ष धारा 38 के तहत, गिरफ्तार व्यक्ति पूछताछ के दौरान वकील से "मुलाकात" कर सकता है, लेकिन पूरी पूछताछ के दौरान नहीं। व्यवहार में, इसका मतलब यह है कि वकीलों को कभी-कभी नज़र में तो रखा जाता है, लेकिन सुनने की सीमा से बाहर, जिससे उनकी उपस्थिति "सजावटी" बनकर रह जाती है।

इसमें आगे तर्क दिया गया है कि धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) और स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ (एनडीपीएस) अधिनियम जैसे विशेष कानून और भी कम सुरक्षा प्रदान करते हैं। इसके अलावा, इन क़ानूनों के तहत एजेंसियों को दिए गए बयान साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य हैं, जिससे ज़बरदस्ती का ख़तरा बढ़ जाता है।

याचिका में संविधान सभा की बहसों का भी ज़िक्र है, जिसमें बताया गया है कि डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने अनुच्छेद 22 का विस्तार करने वाले संशोधनों को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया था ताकि न केवल परामर्श, बल्कि पूछताछ और जाँच सहित आपराधिक कार्यवाही के सभी चरणों में बचाव की गारंटी दी जा सके।

याचिकाकर्ताओं ने अंतर्राष्ट्रीय न्यायशास्त्र पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक मिरांडा बनाम एरिज़ोना मामले के फ़ैसले का हवाला दिया, जिसमें संदिग्धों को पूछताछ से पहले चुप रहने और वकील रखने के उनके अधिकार के बारे में सूचित करने की आवश्यकता थी, और यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय के साल्दुज़ बनाम तुर्की मामले के फ़ैसले का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि पहली पुलिस पूछताछ में वकील न देने से निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार का हनन होता है।

हिरासत में अपराधों पर 152वीं रिपोर्ट सहित भारतीय विधि आयोग की रिपोर्टों का भी हवाला दिया गया, जिसमें तर्क दिया गया कि यातना और दुर्व्यवहार को रोकने के लिए पूछताछ के दौरान वकील की आवश्यकता महत्वपूर्ण है।

याचिका में यह घोषित करने की मांग की गई है कि पूछताछ के चरण से ही कानूनी सलाह तक पहुँच को एक गैर-विवेकाधीन संवैधानिक अधिकार माना जाना चाहिए।

इसमें वीडियो-रिकॉर्डेड पूछताछ, अधिकारों की वैधानिक सूचना और यदि ऐसी आवश्यकताओं से कोई अपवाद किया जाना है तो न्यायिक निगरानी के लिए दिशानिर्देश भी मांगे गए हैं।

याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व गुरुस्वामी के साथ-साथ अधिवक्ता शाश्वती पारही, भूमिका यादव, कशिश जैन, श्रीकर ऐचुरी, अनिकेत चौहान, सुरभि सोनी और मिहिरा सूद ने किया।

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