सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा है कि नकली और फर्जी दस्तावेजों से संबंधित मामलों को केवल इसलिए रद्द नहीं किया जा सकता है क्योंकि सरकार को कोई गलत तरीके से राजस्व का नुकसान नहीं हुआ है। [मिसू नसीम और एक अन्य बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और अन्य]।
जस्टिस संजय किशन कौल और एमएम सुंदरेश की खंडपीठ आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के 2011 के आदेश के खिलाफ अपील पर फैसला सुना रही थी।
एक भूमि मुद्दे के संबंध में एक प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज की गई है जिसमें आरोप लगाया गया है कि निजी उत्तरदाताओं ने मूल्यवान सरकारी भूमि हड़पने के लिए शहरी भूमि सीमा विभाग को नकली और मनगढ़ंत हाउस टैक्स बुक और कर रसीदें जमा की थीं।
उच्च न्यायालय ने याचिका को स्वीकार कर लिया और प्राथमिकी को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि नकली और मनगढ़ंत दस्तावेजों के प्रस्तुतितकरण से सरकार को राजस्व का कोई गलत नुकसान नहीं हुआ है।
उच्च न्यायालय ने निजी प्रतिवादियों के खिलाफ मामले को खारिज करते हुए नोट किया, "एक पल के लिए भी यह मानते हुए कि याचिकाकर्ताओं ने नकली और मनगढ़ंत दस्तावेज पेश किए, जिससे सरकार को कोई गलत नुकसान नहीं हुआ है। इसलिए, इस न्यायालय का विचार है कि अपराध का पंजीकरण और जांच करना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और, इसलिए, अपराध की कार्यवाही रद्द किए जाने योग्य है।"
इसके कारण शीर्ष अदालत के समक्ष वर्तमान अपील की गई।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया तर्क पूरी तरह से अस्थिर था।
शीर्ष न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द करते हुए देखा, "इस तर्क का प्रभाव यह है कि दस्तावेजों का निर्माण अनुमेय है यदि इससे राजस्व का नुकसान नहीं होता है! अत: हमें इस निष्कर्ष पर पहुंचने में कोई संकोच नहीं है कि आक्षेपित आदेश को समाप्त किया जाना चाहिए और फलस्वरूप अपास्त किया जाता है।"
[आदेश पढ़ें]
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