इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा कि जाति व्यवस्था एक गहरी जड़ें हैं, जिसे हमारा समाज स्वतंत्रता प्राप्त करने के 75 साल बाद भी छुटकारा नहीं पा सका है। [सन्नी सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य]।
एकल-न्यायाधीश न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी ने कहा कि जहां एक तरफ हमारा समाज शिक्षित होने का दावा करता है, वहीं जाति को कायम रखते हुए दोहरा मापदंड प्रदर्शित करता है।
अदालत ने अफसोस जताते हुए कहा "हमारे समाज में जाति व्यवस्था गहरी है, हम खुद को शिक्षित समाज के रूप में गर्व करते हैं लेकिन हम अपने जीवन को दोहरे मानकों के साथ जीते हैं। आजादी के 75 साल बाद भी हम इस सामाजिक खतरे से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। यह दयनीय और दुखद है।"
हत्या के एक मामले में सन्नी सिंह नाम के एक व्यक्ति को जमानत देते हुए अदालत ने कहा कि संपन्न लोगों का कर्तव्य है कि वे वंचितों और दलितों की रक्षा करें।
एकल-न्यायाधीश ने कहा, "यह उन समझदार व्यक्तियों का नैतिक कर्तव्य है, जो वंचितों और दलितों की रक्षा करें, ताकि वे खुद को सुरक्षित और आरामदायक महसूस करें।"
कोर्ट ने कहा कि देश के व्यापक हित में आत्मनिरीक्षण करने का समय आ गया है।
सन्नी सिंह एक हत्या के मामले में आरोपी था और उस पर भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 506 (आपराधिक धमकी), 120बी (आपराधिक साजिश) और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3 (2) (वी) के तहत अपराध का आरोप लगाया गया था।
अदालत सिंह द्वारा दायर एक आपराधिक अपील पर सुनवाई कर रही थी जिसमें एक विशेष न्यायाधीश द्वारा उनकी जमानत खारिज करने के आदेश को रद्द करने की मांग की गई थी।
अदालत ने तत्काल मामले में जमानत दे दी और अपील की अनुमति दे दी।
कोर्ट ने कहा, "अपराध की प्रकृति, साक्ष्य, अभियुक्त की संलिप्तता, पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ता के निवेदनों को ध्यान में रखते हुए, अपराध के तरीके को ध्यान में रखते हुए और हिरासत की अवधि को भी ध्यान में रखते हुए और गुणदोष पर कोई राय व्यक्त किए बिना, मेरा मानना है कि अपीलकर्ता का मामला जमानत देने के लिए उपयुक्त पाया गया है। अपीलार्थी सन्नी सिंह को उक्त प्रकरण में अपराध क्रमांक में व्यक्तिगत मुचलका प्रस्तुत करने पर जमानत पर रिहा किया जाये।"
[आदेश पढ़ें]
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