बंबई उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) चंदा कोचर और उनके पति दीपक कोचर की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा वीडियोकॉन ऋण मामले में गिरफ्तारी अवैध है।
न्यायमूर्ति अनुजा प्रभुदेसाई और न्यायमूर्ति एनआर बोरकर की खंडपीठ ने आज फैसला सुनाते हुए 9 जनवरी, 2023 को दंपति को दी गई अंतरिम जमानत की पुष्टि की।
चंदा कोचर और दीपक कोचर को सीबीआई ने 2012 में वीडियोकॉन समूह को दिए गए 3,250 करोड़ रुपये के ऋण में धोखाधड़ी और अनियमितताओं के आरोप में 24 दिसंबर को गिरफ्तार किया था।
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि कोचर के पति और उनके परिवार के सदस्यों को इस सौदे से फायदा हुआ।
यह आरोप लगाया गया था कि जब कोचर आईसीआईसीआई बैंक में मामलों के शीर्ष पर थीं, तब उन्होंने वीडियोकॉन ग्रुप ऑफ कंपनीज के लिए ऋण को मंजूरी दी थी। उनके पति की कंपनी नू रिन्यूएबल ने कथित तौर पर वीडियोकॉन से निवेश हासिल किया था। यह ऋण बाद में गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) में बदल गया और इसे बैंक धोखाधड़ी करार दिया गया।
सीबीआई की प्रारंभिक हिरासत के बाद विशेष सीबीआई अदालत ने उन्हें 29 दिसंबर को न्यायिक हिरासत में भेज दिया था।
दोनों ने मामले को रद्द करने, अपनी गिरफ्तारी को अवैध घोषित करने और हिरासत से रिहा करने की मांग करते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया।
एक समन्वय पीठ ने पिछले साल नौ जनवरी को उन्हें न्यायिक हिरासत से अंतरिम रिहाई का आदेश दिया था।
अदालत ने यह भी माना कि गिरफ्तारी दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 41 ए का उल्लंघन थी, जो संबंधित पुलिस अधिकारी के समक्ष उपस्थित होने के लिए नोटिस भेजने को अनिवार्य करती है।
जब वर्तमान खंडपीठ द्वारा याचिका को अंतिम सुनवाई के लिए लिया गया, तो चंदा कोचर के वरिष्ठ अधिवक्ता अमित देसाई ने तर्क दिया कि वे इस बात पर जोर नहीं दे रहे हैं कि अदालत प्राथमिकी को रद्द करे।
उन्होंने तर्क दिया कि दंपति ने आईसीआईसीआई बैंक द्वारा अपने पूर्व एमडी और सीईओ के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए दी गई मंजूरी को चुनौती देते हुए एक और याचिका दायर की थी।
देसाई ने हालांकि कहा कि कोचर बंधुओं को अवैध रूप से गिरफ्तार किया गया था और उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता के तहत अनिवार्य प्रक्रियाओं का उल्लंघन किया था।
उन्होंने 9 जनवरी, 2023 के अंतरिम आदेश का भी हवाला दिया, जिसमें डिवीजन बेंच ने भी नोट किया था कि कोचर के समान गिरफ्तारी मेमो ने सीआरपीसी की धारा 41 (गिरफ्तारी से पहले नोटिस जारी किया जाना) के तहत अनिवार्य गिरफ्तारी के लिए कोई विशिष्ट आधार दर्ज नहीं किया था।
इस बीच, सीबीआई की ओर से पेश वकील कुलदीप पाटिल ने दलील दी कि अंतरिम आदेश में केवल गिरफ्तारी ज्ञापन पर विचार किया गया और न तो केस डायरी और न ही रिमांड आवेदन का हवाला दिया गया।
उन्होंने तर्क दिया कि चंदा कोचर के खिलाफ चार्जशीट में भी असहयोग के सबूत हैं।
उन्होंने देसाई की इस दलील का भी खंडन किया कि कोचर को किसी महिला अधिकारी ने गिरफ्तार नहीं किया था। उन्होंने तर्क दिया कि पुरुष पुलिस अधिकारियों को महिलाओं को गिरफ्तार करने से तब तक नहीं रोका जाता जब तक कि कोई शारीरिक संपर्क न हो।
उन्होंने कहा कि गिरफ्तारी के समय एक महिला अधिकारी मौजूद थी।
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