[ब्रेकिंग] दिल्ली उच्च न्यायालय ने वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण पर विभाजित फैसला सुनाया

न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने जहां इस प्रावधान को असंवैधानिक करार दिया, वहीं न्यायमूर्ति सी हरिशंकर ने इसे बरकरार रखा।
Delhi High Court Judgment on Marital Rape
Delhi High Court Judgment on Marital Rape
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दिल्ली उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने बुधवार को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 के अपवाद 2 की वैधता पर वैवाहिक बलात्कार मामले में एक विभाजित फैसला सुनाया।

अपवाद प्रभावी रूप से प्रदान करता है कि बलात्कार के आरोपों को उस व्यक्ति के खिलाफ आकर्षित नहीं किया जा सकता है जो अपनी पत्नी के साथ गैर-सहमति से यौन संबंध रखता है।

इसकी वैधता को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी।

डिवीजन बेंच के दो जजों जस्टिस राजीव शकधर और सी हरि शंकर ने अपने फैसले में मतभेद किया।

न्यायमूर्ति शकधर ने जहां इस प्रावधान को असंवैधानिक करार दिया, वहीं न्यायमूर्ति शंकर ने इसे बरकरार रखा।

पीठ ने 21 फरवरी को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 के अपवाद 2 को चुनौती देने वाली याचिकाओं में अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था, जो पति और पत्नी के बीच गैर-सहमति से यौन संबंध को बलात्कार के दायरे से छूट देती है।

कोर्ट ने इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेका जॉन और राजशेखर राव को भी न्याय मित्र नियुक्त किया था।

पिछली सुनवाई में, केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दिल्ली उच्च न्यायालय को बताया था कि इस मुद्दे पर केंद्र राज्य सरकारों और अन्य हितधारकों के साथ परामर्श के बाद ही एक स्टैंड ले सकता है।

उन्होंने जोर देकर कहा कि चूंकि इस मामले का सामाजिक और पारिवारिक जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है, इसलिए केंद्र परामर्श प्रक्रिया के बाद ही अपना पक्ष रखेगा।

हालांकि, कोर्ट ने मामले में सुनवाई टालने से इनकार कर दिया और फैसला सुरक्षित रखने से पहले अन्य पक्षों को सुनने के लिए आगे बढ़ा।

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[BREAKING] Delhi High Court delivers split verdict on marital rape criminalisation

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