

दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार को आदेश दिया कि वह असम राइफल्स और इंडियन आर्मी के बीच सैलरी में बराबरी के मुद्दे पर तीन महीने के अंदर फैसला करे [असम राइफल्स एक्स-सर्विसमैन वेलफेयर एसोसिएशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य]।
जस्टिस दिनेश मेहता और विमल कुमार यादव की डिवीजन बेंच ने कहा कि असम राइफल्स एक्स-सर्विसमैन वेलफेयर एसोसिएशन (पिटीशनर) सरकार के सामने एक रिप्रेजेंटेशन देगी, जिसमें दोनों फोर्स की सैलरी और पेंशन बेनिफिट्स के बीच अंतर को हाईलाइट किया जाएगा, और उस पर तीन महीने के अंदर विचार किया जाएगा।
कोर्ट ने कहा कि जब तीसरे पे कमीशन की सिफारिशें लागू थीं, तो असम राइफल्स को आर्मी के बराबर दर्जा दिया जाता था। हालांकि, चौथे पे कमीशन के साथ अचानक बदलाव आया जब पैरामिलिट्री फोर्स को इस बराबर दर्जे से बाहर कर दिया गया।
कोर्ट ने आदेश दिया, "इसलिए, पिटीशनर तीसरे सेंट्रल पे कमीशन तक असम राइफल्स और इंडियन आर्मी के बीच सैलरी और दूसरे इमोल्युमेंट्स में बराबरी को हाईलाइट करते हुए सक्षम अथॉरिटी को एक पूरी रिप्रेजेंटेशन देते हैं, जो चौथे पे कमीशन के बाद कमज़ोर हो गई लगती है। संबंधित अथॉरिटी रिप्रेजेंटेशन मिलने के तीन महीने के अंदर कानून के अनुसार ऐसे रिप्रेजेंटेशन पर विचार करेगी।"
हाईकोर्ट ने असम राइफल्स एक्स-सर्विसमैन वेलफेयर एसोसिएशन की फाइल की गई एक याचिका का निपटारा करते हुए यह आदेश दिया। याचिका में सरकार को यह पक्का करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी कि असम राइफल्स के सदस्यों के साथ सैलरी और पेंशन के मामले में इंडियन आर्मी जैसा ही बर्ताव किया जाए।
असम राइफल्स भारत की सबसे पुरानी पैरामिलिट्री फोर्स है, जिसे असल में 1835 में (कछार लेवी के तौर पर) बनाया गया था। अब इसे बॉर्डर सिक्योरिटी, खासकर इंडिया-म्यांमार बॉर्डर, और नॉर्थईस्ट में इंटरनल सिक्योरिटी और काउंटर-इंसर्जेंसी ऑपरेशन की ज़िम्मेदारी दी गई है।
यह मिनिस्ट्री ऑफ़ होम अफेयर्स (MHA) के एडमिनिस्ट्रेटिव कंट्रोल में आता है, जिसका मतलब है कि भर्ती, सैलरी, पेंशन, इंफ्रास्ट्रक्चर और दूसरी “सर्विस कंडीशंस” MHA द्वारा कंट्रोल की जाती हैं। हालांकि, फोर्स का ऑपरेशनल कंट्रोल, जैसे डिप्लॉयमेंट, पोस्टिंग, ट्रांसफर और ऑपरेशन के दौरान कमांड, इंडियन आर्मी या मिनिस्ट्री ऑफ़ डिफेंस (MoD) के पास होता है।
समय के साथ, इस दोहरे स्ट्रक्चर की वजह से लगातार शिकायतें सामने आई हैं। कर्मचारियों ने तर्क दिया है कि इस कन्फ्यूजन की वजह से उन्हें रेगुलर आर्मी की तुलना में सैलरी, बेनिफिट्स, पेंशन और वेलफेयर के मामले में नुकसान होता है।
सीनियर एडवोकेट शादान फरासत, एडवोकेट पी रोहित राम, संयम जैन और प्रणव सचदेवा के साथ पिटीशनर्स की तरफ से पेश हुए।
एडवोकेट जगदीश चंद्र, रुचिर मिश्रा, संजीव कुमार सक्सेना, मुकेश कुमार तिवारी, पूनम शुक्ला, रेबा जेना मिश्रा और सिद्धार्थ बजाज ने यूनियन ऑफ़ इंडिया की तरफ से केस लड़ा।
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