दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को एक जनहित याचिका (पीआईएल) खारिज कर दी, जिसमें 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाने की केंद्र सरकार की अधिसूचना को चुनौती दी गई थी, ताकि उन लोगों को श्रद्धांजलि दी जा सके, जिन्होंने 1975 में भारत सरकार द्वारा लगाए गए राष्ट्रीय आपातकाल के खिलाफ संघर्ष किया था।
मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा जारी 13 जुलाई की अधिसूचना संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल की घोषणा के खिलाफ नहीं है, बल्कि केवल "सत्ता के दुरुपयोग और संवैधानिक प्रावधानों के दुरुपयोग और उसके बाद हुई ज्यादतियों" के खिलाफ है।
अदालत ने याचिका खारिज करते हुए कहा, "अधिसूचना संविधान का उल्लंघन या उसका अनादर नहीं करती है।"
जनहित याचिका समीर मलिक नामक व्यक्ति ने दायर की थी, जिसमें तर्क दिया गया था कि आपातकाल संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत घोषित किया गया था और इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि यह संविधान की हत्या करके किया गया था।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि सरकार की अधिसूचना अत्यधिक अपमानजनक थी।
हालांकि, न्यायालय ने इस तर्क को खारिज कर दिया।
पीठ ने टिप्पणी की कि राजनेता हर समय लोकतंत्र की हत्या वाक्यांश का उपयोग करते हैं।
न्यायालय ने कहा, "राजनेता हर समय लोकतंत्र की माँ वाक्यांश का उपयोग करते हैं। हम इसके लिए इच्छुक नहीं हैं। यह [जनहित याचिका] इसके लायक नहीं है।"
इलाहाबाद उच्च न्यायालय में भी इसी तरह की एक याचिका लंबित है।
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Delhi High Court rejects PIL challenging Centre's move to observe Samvidhaan Hatya Divas