केरल उच्च न्यायालय ने हाल ही में इस बात पर जोर दिया कि अदालतों को हर उस मामले में बच्चे के पितृत्व का निर्धारण करने के लिए डीएनए परीक्षण का निर्देश नहीं देना चाहिए जहां पितृत्व विवादित है [सुजीत कुमार एस बनाम विनय बनाम और अन्य]।
कोर्ट ने कहा कि किसी बच्चे के पितृत्व पर महज विवाद ही डीएनए टेस्ट कराने का आदेश देने के लिए पर्याप्त नहीं है। न्यायालय ने कहा, पितृत्व का एक विशिष्ट खंडन होना चाहिए।
न्यायमूर्ति ए बदहरुदीन ने बताया कि केवल योग्य प्रकृति के दुर्लभ और असाधारण मामलों में जहां विवाद को सुलझाने के लिए ऐसे परीक्षण अपरिहार्य हैं, डीएनए परीक्षण या अन्य वैज्ञानिक परीक्षणों का आदेश दिया जा सकता है।
अदालत ने कहा, अन्य मामलों में, पक्षों को बच्चे के पितृत्व को साबित करने के लिए सबूत पेश करने का निर्देश दिया जाना चाहिए।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया, "केवल जब अदालत को ऐसे सबूतों के आधार पर कोई निष्कर्ष निकालना असंभव लगता है या विवाद को डीएनए परीक्षण के बिना हल नहीं किया जा सकता है, तो वह डीएनए परीक्षण का निर्देश दे सकता है, अन्यथा नहीं। दूसरे शब्दों में कहें तो, केवल योग्य प्रकृति के दुर्लभ और असाधारण मामलों में ही विवाद को सुलझाने के लिए डीएनए परीक्षण या कोई अन्य वैज्ञानिक परीक्षण अपरिहार्य हो जाता है।"
उच्च न्यायालय ने पितृत्व परीक्षण के लिए उसकी याचिका को खारिज करने के पारिवारिक अदालत के फैसले के खिलाफ एक व्यक्ति की अपील को खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं।
व्यक्ति (याचिकाकर्ता) ने अपनी अलग हो चुकी पत्नी के इस दावे का खंडन किया कि वह उसके बच्चे का पिता है। पत्नी ने व्यक्ति की याचिका पर आपत्ति जताई और कहा कि वह केवल गुजारा भत्ता देने से बचने के लिए बच्चे के पितृत्व पर विवाद कर रहा है।
उच्च न्यायालय ने अंततः उस व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी और पारिवारिक अदालत के आदेश को बरकरार रखा।
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता आईएस लैला ने किया।
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