
फतेहपुर स्थित 180 वर्ष पुरानी नूरी जामा मस्जिद की प्रबंधन समिति ने सड़क चौड़ीकरण के लिए मस्जिद के एक बड़े हिस्से को ध्वस्त करने की उत्तर प्रदेश लोक निर्माण विभाग की योजना को चुनौती देते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।
अधिवक्ता सैयद अजीम उद्दीन के माध्यम से दायर याचिका में नूरी जामा मस्जिद के विध्वंस को रोकने और इसे विरासत स्थल के रूप में मान्यता और संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए उच्च न्यायालय से तत्काल हस्तक्षेप करने की मांग की गई है।
याचिका के अनुसार, फतेहपुर के लालौली में 180 साल पुरानी नूरी जामा मस्जिद ऐतिहासिक रूप से स्थानीय मुस्लिम समुदाय के लिए एक धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक केंद्र रही है, जो पूजा और सांस्कृतिक संरक्षण के स्थान के रूप में कार्य करती है।
याचिका के अनुसार, मस्जिद को ध्वस्त करने से स्थानीय समुदाय और राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत को अपूरणीय क्षति होगी, क्योंकि एक बार नष्ट हो जाने के बाद ऐतिहासिक संरचनाओं को बहाल नहीं किया जा सकता है।
याचिका में कहा गया है, "बार-बार अनुवर्ती कार्रवाई के बावजूद, प्रतिवादी इस अभ्यावेदन पर कार्रवाई करने में विफल रहे हैं, जो उनके वैधानिक कर्तव्यों की उपेक्षा के बराबर है। यह प्रस्तुत किया गया है कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत की रक्षा करने में अधिकारियों द्वारा निष्क्रियता सार्वजनिक विश्वास सिद्धांत के तहत उनके कर्तव्य का उल्लंघन है।"
याचिका में मस्जिद को जारी किए गए अतिक्रमण नोटिस पर कार्रवाई करने से यूपी सरकार को रोकने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है।
याचिका में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 के तहत नूरी जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित करने के लिए एक अभ्यावेदन पर विचार करने के निर्देश देने की भी मांग की गई है।
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Plea before Allahabad High Court against demolition of Fatehpur Noori Jama Masjid for road widening