मांसाहारी भोजन / उत्पादों के विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाने के लिए जैन निकाय ने बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया

याचिकाकर्ताओं ने लाइसियस, फ्रेशटोहोम फूड्स और मीटिगो कंपनियों को प्रतिवादी बनाया है।
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प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में मांस और मांस उत्पादों के विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष एक जनहित याचिका (PIL) याचिका दायर की गई है।

याचिकाकर्ताओं, जो तीन जैन धार्मिक धर्मार्थ ट्रस्ट हैं और जैन धर्म का पालन करने वाले मुंबई निवासी हैं, ने दावा किया कि उनके बच्चों सहित उनके परिवार को ऐसे विज्ञापन देखने के लिए मजबूर किया जाता है।

याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि यह शांति से जीने के उनके अधिकार का उल्लंघन करता है और बच्चों के दिमाग से "छेड़छाड़" करता है।

याचिका में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, राज्य, भारतीय प्रेस परिषद, खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग और भारतीय विज्ञापन मानक परिषद से राहत मांगी गई है।

इनके अलावा, याचिकाकर्ताओं ने लाइसियस, फ्रेशटोहोम फूड्स और मीटिगो कंपनियों को भी प्रतिवादी के रूप में आरोपित किया है।

उन्होंने संबंधित अधिकारियों को मीडिया में मांसाहारी खाद्य पदार्थों के विज्ञापन को प्रतिबंधित और प्रतिबंधित करने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने और जारी करने के निर्देश देने की मांग की है।

याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि विज्ञापन न केवल उन लोगों को परेशान कर रहे हैं और परेशान कर रहे हैं जो शाकाहारी होने में विश्वास करते हैं, बल्कि उनके निजता के मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन करते हैं।

इस संबंध में, याचिका में संविधान के अनुच्छेद 51 ए (जी) का हवाला दिया गया है जो जीवित प्राणियों के प्रति करुणा को मौलिक कर्तव्यों में से एक के रूप में मानता है।

हालांकि, मांस उत्पादों के विज्ञापन जीवित प्राणियों के प्रति क्रूरता को बढ़ावा और व्यक्त कर रहे हैं।

याचिका में कहा गया है, "शोषण से मुक्त मानव गरिमा के साथ रहना इस देश में हर किसी का मौलिक अधिकार है, हालांकि, विज्ञापन बच्चों और युवाओं के दिमाग का शोषण, मांसाहारी खाद्य पदार्थों का सेवन करने के लिए उकसाने, बढ़ावा देने और डराने-धमकाने के लिए करते हैं।"

याचिका पर मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता की पीठ इस सप्ताह सुनवाई कर सकती है।

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