न्यायिक अधिकारी कानून से ऊपर नहीं; कर्तव्य में लापरवाही का परिणाम भुगतना होगा: केरल उच्च न्यायालय

न्यायमूर्ति पीवी कुन्नीकृष्णन ने कहा कि न्यायिक अधिकारियों की आलोचना हो सकती है लेकिन यह केवल भारतीय न्यायपालिका में लोगों के अपार विश्वास के कारण है और यह विश्वास भारत की रीढ़ है।
Kerala High Court
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केरल उच्च न्यायालय ने हाल ही में यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि न्यायिक अधिकारियों की ओर से कर्तव्य में कोई लापरवाही होती है, तो संवैधानिक अदालतों को हस्तक्षेप करना चाहिए और स्थिति को संबोधित करना चाहिए ताकि न्यायपालिका में लोगों का विश्वास मजबूत हो सके। [मोहम्मद नज़ीर एमपी व अन्य बनाम केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप व अन्य]।

न्यायमूर्ति पीवी कुन्नीकृष्णन ने रेखांकित किया कि देश का कानून सभी के लिए समान है, चाहे वह मजिस्ट्रेट हो या न्यायाधीश।

फैसले में कहा गया है, "भले ही कोई व्यक्ति मजिस्ट्रेट या न्यायाधीश के पद पर आसीन हो, देश का कानून सभी पर लागू होता है। यदि कर्तव्य में कोई लापरवाही होती है, तो संवैधानिक अदालतों को न्यायपालिका में लोगों के विश्वास को मजबूत करने के लिए कदम उठाना चाहिए। मजिस्ट्रेट, न्यायाधीश और अन्य पीठासीन अधिकारी कानून से ऊपर नहीं हैं और यदि वे कर्तव्य का पालन नहीं करते हैं, तो उन्हें इसके परिणाम भुगतने होंगे।"

उन्होंने आगे कहा कि न्यायिक अधिकारियों को अपने खिलाफ की गई आलोचनाओं का जवाब देने की जरूरत नहीं है, बल्कि इसके बजाय, न्यायिक प्रणाली के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर ध्यान देना चाहिए और अपनी सत्यनिष्ठा साबित करनी चाहिए।

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Judicial officers not above law; must face consequences for dereliction of duty: Kerala High Court

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