अधिवक्ताओं का बंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से में प्रत्यक्ष सुनवाई के निर्णय पर पुनर्विचार करने का अनुरोध

बंबई उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को एक आदेश जारी करके घोषणा की है कि उसकी अधिकांश पीठ एक दिसंबर, 2020 से 10 जनवरी, 2021 के दौरान प्रयोग के तौर पर मुकदमों की प्रत्यक्ष सुनवाई करेंगी
Dipankar Datta, Bombay HC
Dipankar Datta, Bombay HC
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बंबई बार एसोसिएशन और मुंबई में वकालत करने वाले 452 अलग से बंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता को रविवार को पत्र लिख कर अनुरोध किया है कि वकीलों को प्रत्यक्ष सुनवाई और वर्चुअल सुनवाई के विकल्प चुनने का अवसर प्रदान किया जाये।

बीबीए ने मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध किया है कि उच्च न्यायालय की अधिकांश पीठ द्वारा एक दिसंबर, 2020 से 10 जनवरी, 2021 के दौरान प्रयोग के तौर पर मुकदमों की प्रत्यक्ष सुनवाई करने सबंधी कार्यालय के शुक्रवार के आदेश में संशोधन किया जाये।

इसी तरह, मुंबई में विभिन्न न्यायिक मंचों पर वकालत करने वाले 452 वरिष्ठ अधिवक्ताओं और अन्य अधिवक्ताओं ने भी मुख्य न्यायाधीश को अलग से पत्र लिख कर अनुरोध किया है कि वकीलों को प्रत्यक्ष सुनवाई और वर्चुअल सुनवाई मे से विकल्प चुनने का अवसर प्रदान किया जाये।

देश में कई उच्च न्यायालयों ने अदालतों को फिर से खोलने के प्रयोग किये लेकिन अदालतों में वायरस के प्रसार की वजह से इन्हें बंद करना पड़ गया।

मुख्य न्यायाधीश को भेजे गये प्रतिवेदनों में देश में कोविड-19 के मामलों की संख्या में तेजी से हो रही वृद्धि का उल्लेख करते हुये कहा गया है कि इस समय प्रत्यक्ष सुनवाई की प्रक्रिया शुरू होने से इस संक्रमण के तेजी से फैलने का जोखिम बढ़ जायेगा।

प्रतिवेदन में कहा गया है कि वकील और न्यायालय का स्टाफ ही नही बल्कि बुजुर्ग माता पिता सहित उनके परिजनों के लिये भी यह जोखिम पैदा करेगा।

उन्होंने लिखा है,

‘‘भारत में कई दूसरे उच्च न्यायालयों ने प्रयोग के तौर पर अदालतों को पुन: खोलकर स्थिति का जायजा लिया लेकिन इन्हें अदालतों में ही इसका विस्तार होने की वजह से तुरंत ही इन्हें बंद कर दिया। अधिवक्ताओं ने इस संबंध में दिल्ली, राजस्थान, कर्नाटक, मद्रास, पटना, इलाहाबाद, झारखंड और मेघालय उच्च न्यायालय के उदाहरण भी दिये हैं।’’

इन अधिवक्ताओं का कहना है कि मामलों की प्रत्यक्ष सुनवाई करने की प्रकिया फिर से शुरू करना ‘एक कदम आगे और दो कदम पीछे’ वाली स्थिति पैदा करेगा। यह सिर्फ इस संदेश को ही बल प्रदान करेगा कि अत्यधिक संक्रमण वाली यह बीमारी प्रत्यक्ष सुनवाई फिर से शुरू करने को नियंत्रित करना लगभग असंभव होगा।

अधिवक्ताओं ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश का भी जिक्र किया है जिसमें निर्देश दिया गया है कि प्रत्यक्ष सुनवाई का प्रयास किया जा सकता है, लेकिन यह बाध्यकारी नहीं बल्कि वैकल्पिक होना चाहिए।

इस प्रतिवेदन में उन संभावित कारणों का जिक्र किया गया है जिनसे कोविड-19 बढ़ेगा और एक बार फिर अदालतें बंद करनी पड़ सकती हैं।

1. मुकदमों की प्रत्यक्ष सुनवाई शुरू होने की स्थिति में सार्वजनिक परिवहन पर निर्भर रहने वाले अधिवक्तओं के लिये ट्रेन पकड़ना कठिन है क्योंकि यह सवेरे 11 से हैं।

2. अधिकांश वकील अपने अपने पैतृक स्थानों पर लौट गये हैं। यदि इन सभी को लौटने के लिये बाध्य किया गया तो मुंबई में एक बार आने वाले लोगों की संख्या बढ़ेगी।

3.प्रत्येक व्यक्ति पूरे दिन न्यायालय कक्ष की सुविधाओं को साझा करेंगे। ऐसी स्थिति में इन सुविधाओं की लगातार सफाई करना कठिन होगा।

प्रतिवेदन में इस तथ्य का भी जिक्र किया गया है कि मुख्य न्यायाधीश का न्यायालय निर्बाध रूप से वर्चुअल सुनवाई के साथ ही प्रत्यक्ष सुनवाई भी कर रहा है।

भौतिक सुनवाई को फिर से शुरू करने से "एक-कदम आगे, दो-कदम पीछे" स्थिति पैदा होगी।
बॉम्बे के वकील

इन अधिवक्ताओं ने कहा कि दूसरी अदालतें भी प्रत्यक्ष और वर्चुअल सुनवाई शुरू कर सकती हैं और बीबीए व्यवधान रहित इस प्रणाली को स्थापित करने के लिये तकनीकी एजेन्सियों की मदद लेंगी।

इस बीच, अधिवक्ताओं ने अनुरोध किया है कि सफलतापूर्वक चल रही वर्चुअल सुनवाई की वर्तमान व्यवस्था 31 दिसंबर, 2020 तक जारी रखी जाये।

[बॉम्बे बार एसोसिएशन द्वारा प्रतिनिधित्व पढ़ें]

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[मुंबई के वकीलों द्वारा प्रतिनिधित्व पढ़ें]

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"One step forward, two steps back:" Lawyers write to Bombay High Court Chief Justice to reconsider physical hearing

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