इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उप्र बिजली विभाग को दिवाला डिफाल्टर कंपनी के निदेशकों से बिजली बकाया 9 करोड़ रुपये वसूलने की अनुमति दी

न्यायालय ने कहा कि एक संकल्प योजना का अनुमोदन स्वतः गारंटी के एक स्वतंत्र अनुबंध से उत्पन्न होने वाली अपनी देयता के ज़मानत/गारंटर को दोषमुक्त नहीं करता है।
Allahabad High Court
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इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में उत्तर प्रदेश विद्युत विभाग द्वारा दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 के प्रावधानों और राष्ट्रीय कंपनी कानून द्वारा अनुमोदित समाधान योजना के प्रावधानों के तहत दिवालिया घोषित की गई डिफॉल्टर कंपनी से 9 करोड़ बिजली बकाया की वसूली के लिए जारी एक मांग नोटिस को बरकरार रखा है। ट्रिब्यूनल। [नरेंद्र सिंह पंवार बनाम पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड]।

वर्तमान याचिका दिनांक 30 जून 2022 की मांग की सूचना के विरुद्ध विद्युत विभाग द्वारा मेसर्स त्रिमूर्ति कॉनकास्ट प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी के बिजली बकाये की वसूली के लिए उ0प्र0 सरकार विद्युत उपक्रम बकाया वसूली अधिनियम 1958 की धारा 5 सहपठित धारा 3 के तहत दायर की गई थी। मामले में याचिकाकर्ता कंपनी के दो निदेशकों में से एक था।

याचिकाकर्ता के वकील का मुख्य तर्क यह था कि डिफॉल्टर कंपनी के संबंध में इन्सॉल्वेंसी कार्यवाही में रिज़ॉल्यूशन प्लान को मंजूरी मिलने से डिफॉल्टर कंपनी के दोनों निदेशकों को स्वतः छुट्टी मिल जाएगी।

न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित की पीठ ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि एक संकल्प योजना की मंजूरी वास्तव में गारंटी के एक स्वतंत्र अनुबंध से उत्पन्न होने वाली अपनी देयता की ज़मानत/गारंटर को दोषमुक्त नहीं करती है।

[आदेश पढ़ें]

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Allahabad High Court allows UP Electricity Department to recover ₹ 9 crore electricity dues from directors of insolvent defaulter company

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