इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उप्र सरकार से कहा: किशोर न्याय बोर्ड शीघ्र गठित करने के लिये कदम उठाये जायें

न्यायालय ने कहा, ‘‘बोर्ड का निष्क्रिय होना अनुच्छेद 15 (3) के प्रावधान के साथ ही बच्चों के अधिकारों पर संयुक्त् राष्ट्र कंवेशन की संधि की पुष्टि में किये गये संकल्प के भी खिलाफ है।’’
Allahabad High Court
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इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह उत्तर प्रदेश में किशोर न्याय बोर्ड का गठन और इसके कार्यशील बनाने के लिये तेजी से कदम उठाये

न्यायालय ने यह टिप्पणी भी की कि भविष्य में राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी स्थान रिक्त होने की तारीख से छह महीने पहले ऐसे रिक्तियों को भरने के लिये कदम उठाये जायें।

न्यायमूर्ति शशि कांत गुप्ता और न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की पीठ ने कहा,

‘‘यह न्यायालय एक बार फिर दोहराता है कि बोर्ड का निष्क्रिय होना अनुच्छेद 15 (3) के प्रावधान के साथ ही बच्चों के अधिकारों पर संयुक्त् राष्ट्र कंवेशन की संधि की पुष्टि में किये गये संकल्प के भी खिलाफ है। हम आशा और विश्वास करते हैं कि सरकार किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) कानून, 2015 के सराहनीय उद्देश्यों को पूरा करने के लिये आवश्यकत कदम उठायेगी।’’
इलाहाबाद उच्च न्यायालय

पीठ ने कहा,

‘‘बच्चे हमारे देश का आधार हैं और अनुच्छेद 15 (3) भी सरकार को यह दायित्व सौंपता है कि वह बच्चों के अधिकारों के संरक्षण हेतु विशेष उपायों के लिये कदम उठाये।’’

उच्च न्यायालय ने 12 अक्टूबर को अपने आदेश में इस तथ्य को इंगित किया कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभात और संरक्षण) अधिनियम की धारा 4 में प्रत्येक जिले के लिये किशोर न्याय बोर्ड के सदस्यों के गठन का प्रावधान है।

न्यायालय ने कहा कि इस कानून के सराहनीय उद्देश्यों को तभी पूरा किया जा सकता है जब बोर्ड को प्रदत्त शक्तियों के निर्वहन के लिये कानून के प्रावधान के अनुरूप सक्रिय बोर्ड होगा।

याचिकाकर्ता ने न्यायालय को सूचित किया कि राज्य सरकार ने सालों से इनमें रिक्त पदों को नहीं भरा है।

याचिकाकर्ता के अनुसार किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 में लागू होने के बाद शुरू में दिसंबर 2016 में एक अधिसूचना प्रकाशित हुयी थी और सभी जिलों में एक एक समिति गठित की गयी थी। हालांकि, इन समिति का कार्यकाल तीन साल के लिये था जो दिसंबर, 2019 में खत्म हो गया।

याचिकाकर्ता का कहना था कि 2016 के आदर्श नियमों के अनुसार चयन समिति के सचिव के लिये कोई भी पद रिक्त होने से छह महीने पहले ऐसी रिक्तियों को भरने की प्रक्रिया शुरू करना जरूरी था।

याचिका में कहा गया था कि यद्यपि समिति का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही नया बोर्ड गठित किया जाना चाहिए था लेकिन राज्य सरकार ने 31 जनवरी, 2020 को इस संबंध में एक शासकीय आदेश जारी किया कि नया चयन होने तक जिलाधिकारी या जिलाधिकारी द्वारा नामित कोई एडीम/एसडीएम चयन समित का काम करेगा और जिला न्यायधीश द्वारा नामित मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या कोई न्यायिक मजिस्ट्रेट किशोर न्याय बोर्ड का काम करेंगे।

न्यायालय को सूचित किया गया कि लखनऊ पीठ ने इस शासकीय आदेश का संज्ञान लिया और टिप्पणी की कि यह 2015 के कानून के प्रावधानों और इसके तहत बने नियमों के अनुरूप नहीं है।

लखनऊ पीठ ने 7 फरवरी, 2020 के आदेश के माध्यम से निर्देश दिया कि इस तरह से गठित चयन समिति 31 मई, 2020 तक राज्य सरकार को अपनी सिफारिशें देगी। इसके बाद, राज्य रकार को इन सिफारिशों की तारीख से 10 दिन के भीतर नियुक्ति पत्र जारी करने थे।

उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गयी जिस पर न्यायालय ने अतिरिक्त मुख्य स्थाई अधिवक्ता को जून, 2020 तक बोर्ड गठित करने के बारे मे लिखित में निर्देश दिये। इसी के आधार पर जनहित याचिकाका 12 फरवरी, 2020 को निस्तारण कर दिया गया था।

हालांकि, न्यायालय को सूचित किया गया कि इन निर्देशों के बावजूद अभी भी किशोर न्याय बोर्ड का गठन होना है। याचिकाकर्ता का दावा है कि बोर्ड में नियुक्ति के लिये विचार के योग्य उसके पास पात्रता है।

इस याचिका पर विचार करते हुये उच्च न्यायालय को सूचित किया गया कि न्यायमूर्ति विनय कुमार माथुर की अध्क्षता में चयन समिति का गठन कर दिया गया है।

हालांकि, देश में लॉकडाउन की वजह से न्यायालय द्वारा पहले निर्धारित किये गये समय सीमा के भीतर बोर्ड गठित करने के लिये कदम नहीं उठाये जा सके। इसी दौरान,सरकार ने सूचित किया कि इस महीने के शुरू में चयन प्रक्रिया शुरू हो गयी और हर हालत में चयन प्रक्रिया को 31 जनवरी, 2021 तक पूरा कर लिया जायेगा।

हालांकि, उच्च न्यायालय ने इस पर टिप्पणी की कि निर्देशों में इस बारे में खामोशी है कि रिक्तयां होने से पहले ही इन रिक्तियों को भरने के लिये कदम क्यों नहीं उठाये गये।

न्यायालय ने कहा कि चूंकि यह मामला लखनऊ पीठ के पास विचारार्थ था, इसलिए यह निर्देश दिया गया कि इस संबंध में किसी भी प्रगति के बारे में उसी पीठ को सूचित किया जाना चाहिए। इसके साथ ही न्यायालय ने ‘बोर्ड के गठन के लिये तेजी से कदम उठाने के निर्देश के साथ याचिका का निस्तारण कर दिया।

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Take steps to constitute Juvenile Justice Board expeditiously: Allahabad High Court to State government

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