उच्चतम न्यायालय ने आध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश पर आज रोक लगा दी जिसमे उसने प्रदेश की वाई एस जगनमोहन रेड्डी सरकार से पूछा था कि क्या राज्य मे ‘संवैधानिक तंत्र चरमराने ’ की स्थिति ‘चिंताजनक’ है।
उच्च न्यायालय ने 14 बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं की सुनवाई के दौरान एक अक्टूबर को राज्य सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता को इस बारे में मदद के लिये तैयारी के साथ आने के लिये कहा था कि ‘‘क्या न्यायालय यह निष्कर्ष दर्ज कर सकता है कि आंध्र प्रदेश की मौजूद परिस्थितियों राज्य में संवैधानिक तंत्र चरमरार गया है या नहीं।’’
आंध्र प्रदेश सरकार ने इस आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी और कहा कि यह अधिकारों के बंटवारे के सिद्धांत का अतिक्रमण करता है क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत न्यायपालिका को नहेीं अपितु राष्ट्रपति को ‘संवैधानिक तंत्र चरमरा जाने’ के सवाल पर विचार करने का अधिकार है।
प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने आदेश दिया, ‘‘वैसे भी, क्या आपने कभी इस तरह का आदेश देखा है? शीर्ष अदालत के रूप में तो हम इसे परेशानी पैदा करने वाला पाते हैं। नोटिस जारी किया जाये। इस पर रोक रहेगी। मामले को अवकाश के तुरंत बाद सूचीबद्ध किया जाये।’’
संविधान का अनुच्छेद 356 राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो जाने की स्थिति के बारे में है। अनुच्छेद 356 के अंतर्गत अगर राष्ट्रपति राज्य के राज्यपाल की रिपोर्ट या अन्यथा इस बात से संतुष्ट है कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गयी है जिसमे राज्य सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं चल सकती है तो वह राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं।
आंध्र प्रदेश सरकार ने तर्क दिया कि, ‘‘यह अधिकार पूरी तरह कार्यपालिका में निहित है और न्यायपालिका इसका इस्तेमाल नहीं कर सकती है।’’
अधिवक्ता महफूज नजकी द्वारा दाखिल इस याचिका में कहा गया है कि संवैधानिक व्यवस्था में यह फैसला करना अदालत का काम नहीं है कि क्या राज्य में संवैधानिक तंत्र चरमरा गया है।
याचिका में कहा गया है, ‘‘यह अधिकार स्पष्ट रूप से एक अलग सांविधानिक प्राधिकार को सौंपा गया है और यह सही भी है। संवैधानिक न्यायालयों के पास यह निर्धारित करने के लिये ऐसी कोई न्यायिक पद्धति और मानक नहीं है कि क्या राज्य में संवैधानिक तंत्र चरमरा गया है। यह वास्तव में कार्यपालिका का काम है और इसके लिये विस्तृत तथ्यात्मक विश्लेषण की आवश्यकता होती है। न्यायालयों के पास इस तरह के सवालों का फैसला करने का कोई तरीका नहीं है।’’
याचिका में यह भी कहा गया है कि राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय में वह आदेश वापस लेने का अनुरोध करते हुये एक आवेदन दायर किया था जिसमे स्वत: ही इस तरह का सवाल उठाया गया था, लेकिन इस पर अभी तक विचार नहीं किया गया है।
न्यायालय में दायर अपील में कहा गया, ‘‘उच्च न्यायालय द्वारा तैयार किया गया सवाल अप्रत्याशित ही नहीं है बल्कि अनावश्यक और संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन करने वाला है और गंभीर मिथ्या विचार है।’’
राज्य में वाईएस जगनमोहन रेड्डी सरकार का उच्च न्यायालय के साथ सीधा टकराव चल रहा है। रेड्डी ने प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे को पत्र लिखकर आरोप लगाया थाकि आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित उनकी सरकार को अस्थिर करने के लिये उच्च न्यायालय का इस्तेमाल कर रहे हैं।
इस पत्र में यह आरोप भी लगाया गया था कि उच्चतम न्यायालय के एक पीठासीन न्यायाधीश इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये उच्च न्यायालय में अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर रहे हैं।
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