अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल को एक पत्र लिखकर अधिवक्ता प्रशांत भूषण द्वारा एक इंटरव्यू में दिये गये वक्तव्य के लिये उनके खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने की अनुमति मांगी गयी है। यह इंटरव्यू द हिन्दू में ‘द इंडिपेन्डेन्स ऑफ द ज्यूडीशियरी हैज कोलैप्सड’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ है।
उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ता सुनील कुमार सिंह ने इस पत्र में कहा है कि भूषण का 29 नवंबर का इंटरव्यू यह ‘‘आभास दिलाता है कि मानो उच्चतम न्यायालय निष्पक्षता के साथ काम नहीं करता है।’’
इस इंटरव्यू में भूषण को उद्धृत करते हुये कहा गया है,
‘‘आज, सबसे बड़ी समस्या उच्चतम न्यायालय की स्वतंत्रता में कमी होना और सरकार के इशारे पर चलने की उसकी तत्परता है।’’
सिंह के अनुसार इस तरह का वक्तव्य ‘‘उच्चतम न्यायालय की संपूर्णता के प्रति गंभीर आक्षेप है, कि भारत का उच्चतम न्यायालय स्वतंत्र और निष्पक्ष संस्थान नहीं है बल्कि वह सरकार के इशारे पर चलने को उत्सुक है। यह बहुत ही आपत्तिजनक और धृष्टता वाला है। यह माननीय उच्चतम न्यायालय पर दुर्भावनापूर्ण हमला है।’’
एक इंटरव्यू में, कहते हैं कि भूषण ने यह टिप्पणी की कि स्वतंत्रता में कमी की वजह ‘‘प्रधान न्यायाधीशों को अपने नियंत्रण में लाकर एक तरह से प्रत्येक महत्वपूर्ण फैसले में उसे प्रभावित करने की सरकार की योग्यता है।’’
सिंह ने पत्र में लिखा है कि इस तरह के वक्तव्य ‘‘दुर्भावनापूर्ण और उच्चतर न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाने के सुनियोजित अभियान का हिस्सा हैं।’’
अधिवक्ता सुनील कुमार सिंह के अनुसार, ‘‘प्रशांत भूषण एक स्थायी अवमाननाकर्ता है और उच्चतम न्यायालय की अवमानना के लिये उच्चतम न्यायालय में अनेक कार्यवाही लंबित होने के बावजूद वह इस तरह के गैर जिम्मेदारी वाले, अवमानना वाले बयान देने से बाज नहीं आ रहे हैं और लगातार उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ बयान दे रहे हैं।
इंटरव्यू में भूषण के हवाले से कहा गया है,
‘‘देखिये, पहले भी, प्रधान न्यायाधीश हुये हैं जिनमे कमजोरियां थीं। लेकिन पहले की सरकारें इतनी ज्यादा निष्ठुर नहीं थीं। मौजूदा सरकार ने प्रधान न्यायाधीश के पद ग्रहण करने से पहले ही उनके बारे में जानकारी तैयार करने के लिये सरकारी एजेन्सियों का इस्तेमाल किया है। वे अक्सर ही भावी प्रधान न्यायाधीश को सरकार के इशारे पर चलने का आश्वासन दिये जाने तक अनिश्चित्ता की स्थिति में रखते हैं।’’
अधिवक्ता सिंह ने पत्र में लिखा है कि ‘‘भूषण का सरकार को न्यायपालिका से जोड़ने का इस तरह का वक्तव्य अनावश्यक है।’’
उन्होने लिखा, ‘‘स्वतंत्र न्यायपालिका लोकतंत्र के स्तंभों में से एक है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्ठा (इस मामले में उच्चतम न्यायालय) पर सवाल उठाने के उनके (भूषण) बयान सुनियोजित तरीके से जनता की नजरों में न्यायपालिका के अधिकार को कमतर करने वाले हैं।
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