[भीमा कोरेगांव] बॉम्बे हाईकोर्ट ने यूएपीए चुनौती में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल की सहायता मांगी

आरोपी आनंद तेलतुंबडे द्वारा दायर याचिका में एनआईए द्वारा "फ्रंट ऑर्गनाइजेशन" शब्द के दुरुपयोग और जमानत से संबंधित गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती दी गई है।
Attorney General KK Venugopal, Bombay High Court

Attorney General KK Venugopal, Bombay High Court

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बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को भारत के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से भीमा कोरेगांव के आरोपी आनंद तेलतुम्बडे द्वारा गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका में सहायता मांगी।

अधिवक्ता देवयानी कुलकर्णी के माध्यम से दायर रिट याचिका में यूएपीए के तहत जमानत प्रावधानों और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा "फ्रंट ऑर्गनाइजेशन" शब्द के दुरुपयोग को चुनौती दी गई है।

वरिष्ठ अधिवक्ता मिहिर देसाई ने बताया कि न तो यूएपीए और न ही कोई नियम परिभाषित करता है कि 'फ्रंट ऑर्गनाइजेशन' क्या है। उन्होंने प्रस्तुत किया कि किसी संगठन को "प्रतिबंधित" घोषित करने का एकमात्र तरीका केंद्र सरकार द्वारा इसे अधिसूचित करने या इसे यूएपीए की अनुसूची के तहत जोड़ने के बाद ही था।

कुछ देर तक दलीलें सुनने के बाद जस्टिस एसबी शुक्रे और जीए सनप की बेंच ने अटॉर्नी जनरल को नोटिस जारी कर कोर्ट की मदद करने को कहा और चार हफ्ते बाद मामले को अंतिम निपटारे के लिए पोस्ट कर दिया।

तेलतुम्बडे का तर्क था कि यूएपीए की पहली अनुसूची में न केवल व्यक्तिगत संगठन शामिल हैं, बल्कि उनके सभी गठन और फ्रंट संगठन भी शामिल हैं। याचिका में कहा गया है कि "फ्रंट ऑर्गनाइजेशन" की परिभाषा बहुत व्यापक थी और एनआईए द्वारा इसका दुरुपयोग किया गया था।

उन्होंने यह भी बताया कि एनआईए की दलील थी कि कुछ संगठन जो प्रतिबंधित संगठनों के लिए मोर्चा हैं, उन पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था। हालांकि, यह केंद्र सरकार का फैसला नहीं था, बल्कि एनआईए के एक व्यक्तिगत अधिकारी ने लिया था।

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