बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) और स्टेट बार काउंसिल से वकीलों के खिलाफ वादियों द्वारा की गई शिकायतों से निपटने के दौरान सावधानी बरतने को कहा। [जेन कॉक्स बनाम बार काउंसिल ऑफ इंडिया और अन्य]
जस्टिस जीएस पटेल और डॉ. नीला केदार गोखले ने बार काउंसिल से आग्रह किया कि वे पहले वकीलों के खिलाफ आरोप लगाने वाले शिकायतकर्ताओं की वास्तविकता या सदाशयता पर विचार करें।
न्यायालय ने आगे वादकारियों द्वारा अपने विरोधियों के वकीलों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने की प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की।
न्यायालय ने उन मामलों पर भी प्रकाश डाला जहां ऐसी शिकायतों ने वकीलों को मानसिक आघात पहुंचाया और बार काउंसिल से वकीलों पर ऐसी शिकायतों के प्रभाव पर विचार करने का आग्रह किया।
कोर्ट इस महीने की शुरुआत की एक घटना का जिक्र कर रहा था, जहां एक याचिकाकर्ता ने बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा (बीसीएमजी) को लिखा था कि उनके प्रतिद्वंद्वी के वकील ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के विपरीत प्रस्तुतियां दी थीं।
अदालत ने बिना शर्त माफ़ी मांगने का अवसर देने से पहले वादी को उसके दृष्टिकोण पर फटकार लगाई थी, जिसे अंततः वादी ने किया।
इस मामले का उल्लेख करते हुए, अदालत ने कहा कि बार काउंसिल को वकीलों को नोटिस भेजने से पहले शिकायत की जांच करनी चाहिए थी।
खंडपीठ 2005 में बीसीएमजी के पास दायर एक शिकायत के खिलाफ एक वकील द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
जब स्टेट बार काउंसिल ने शिकायत पर कार्रवाई नहीं की तो शिकायतकर्ता ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के समक्ष अपील की थी।
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