
बॉम्बे उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को महाराष्ट्र में रामसर सम्मेलन स्थलों के संरक्षण और परिरक्षण की निगरानी के लिए स्वप्रेरणा से एक जनहित याचिका (पीआईएल) शुरू की।
मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की पीठ ने 11 दिसंबर, 2024 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मामले का संज्ञान लिया, जिसमें देश भर में रामसर कन्वेंशन स्थलों की सुरक्षा का आह्वान किया गया था।
पीठ ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट द्वारा 11 दिसंबर को जारी निर्देशों के तहत ... हम इसे एक स्वप्रेरणा जनहित याचिका के रूप में मानते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में रामसर कन्वेंशन स्थलों का उचित रखरखाव किया जाए।"
रामसर स्थल वे आर्द्रभूमि हैं जिन्हें अंतरराष्ट्रीय महत्व का माना जाता है। भारत में ऐसे 85 स्थल हैं, जिनमें से तीन महाराष्ट्र में हैं, अर्थात् नंदूर मध्यमेश्वर वन्यजीव अभयारण्य, लोनार झील और ठाणे क्रीक।
उच्च न्यायालय ने आज इस मामले में भारत संघ, केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, महाराष्ट्र सरकार के पर्यावरण, राजस्व एवं वन विभागों के साथ-साथ महाराष्ट्र राज्य आर्द्रभूमि प्राधिकरण से जवाब मांगा है।
पीठ ने इस मामले में न्यायालय की सहायता के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता जनक द्वारकादास को न्यायमित्र नियुक्त किया है।
द्वारकादास को एक विस्तृत नोट तैयार करने का काम सौंपा गया है, जिसमें उन प्रमुख मुद्दों को रेखांकित किया जाएगा, जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता हो सकती है। इसे चार सप्ताह के भीतर प्रस्तुत किया जाना है।
इस मामले की सुनवाई 25 फरवरी को होनी है।
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Bombay High Court initiates suo motu PIL for preservation of Ramsar Convention sites