बंबई उच्च न्यायालय कवि और एक्टिविस्ट डा वरावरा राव की स्वास्थ्य के आधार पर जमानत पर रिहाई तथा इससे जुड़े अन्य अनुरोधों पर वास्तविक रूप से सुनवाई करेगा।
इस मामले में 12 नवंबर के बाद आज अपराह्न आगे सुनवाई शुरू हुयी। हालांकि, इसे संक्षिप्त सुनवाई के बाद 18 नवंबर के लिये स्थगित कर दिया गया क्योंकि वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई के दोरान राव की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इन्दिरा जयसिंह की दलीलें पीठ को साफ सुनाई नहीं पड़ रही थीं।
न्यायालय ने शासन द्वारा राव की सेहत की स्थिति के बारे में पेश मेडिकल रिपोर्ट और राव के वकील की इस आपत्ति को रिकार्ड पर लिया कि उन्हे सिर्फ एक पेज की रिपोर्ट भेजी गयी है।
जयसिंह ने मंगलवार को दलील दी कि शासन उच्च न्यायालय के निर्देशों के विपरीत पूरी मेडिकल रिपोर्ट पेश नहीं कर रहा हे।
‘‘जो रिपोर्ट अभी आपको सौंपी गयी है वह छलावा है। मैं दृढ़ता के साथ अनुरोध कर रही हूं कि उन्हें नानावटी अस्पताल भेजा जाये ताकि सही तरीके से एक रिपोर्ट आपको सौंपी जा सके। हम लगातार कह रहे हैं कि वह भूलने की बीमारी से ग्रस्त हैं, इस संबंध में रिपोर्ट कहां है?’’
न्यायालय ने कहा, ‘‘समस्या अभी भी जस की तस है कि हम आपके वाक्यों को स्पष्ट नहीं सुन पा रहे हैं।’’
इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता जयसिंह ने सुझाव दिया की इस मामले की वास्तविक न्यायालय में सुनवाई की जा सकती है।
‘‘अगर आपको महसूस होता है कि वास्तविक सुनवाई न्यायालय के फैसला लेने में सहायक होगी तो मैं आने के लिये तैयार हूं।’’
न्यायालय ने राव के मेडिकल परीक्षण से संबंधित सारा विवरण पेश करने का शासन को निर्देश देते हुये कहा कि वह वास्तविक सुनवाई के लिये मामला सूचीबद्ध कर सकता है।
न्यायालय ने सवाल किया, ‘‘मैडम, क्या आप वास्तविक सुनवाई के लिये आ सकेंगी।’’
इस पर जयसिंह ने जवाब दिया, ‘‘जी हां, मैं अपने एडवोकेट्स ऑन रिकार्ड की टीम के साथ आने के लिये तैयार हैं।’’
तद्नुसार, न्यायालय ने शासन और जेल प्राधिकारियों की ओर से इसकी सहमति दर्ज करने के बाद इस मामले को 18 नवंबर सवेरे 11 बजे वास्तविक न्यायालय में सुनवाई के लिये सूचीबद्ध कर दिया।
एनआईए की ओर अतिरिक्त सालिसीटर जनरल अनिल सिंह और तलोजा जेल अधिकारियों की ओर से मुख्य लोक अभियोजक दीपक ठाकरे पेश पेश हुये।
न्यायमूर्ति एसएस शिन्दे और न्यायमूर्ति माधव जामदार की पीठ राव की पत्नी पेन्दियाला हेमलताकी याचिका पर सुनवाई कर रही थी। हेमलता ने दलील दी है कि राव की चिकित्सीय जरूरतों को सरकार नजरअंदाज कर रही है ओर उन्हें संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त उनके अधिकारों का उल्लंघन करके तलोजा जेल में अमानवीय स्थिति में रखा जा रहा है।
भीमा कोरेगांव मामले में जून, 2018 में गिरफ्तारी के बाद से ही राव जेल में हैं। उच्चतम न्यायालय द्वारा इस मामले में हस्तक्षेप करने से इंकार करने के बाद राव की पत्नी ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय से कहा था कि उनकी जमानत याचिका पर यथाशीघ्र सुनवाई की जाये।
इससे पहले, न्यायमूर्ति एके मेनन और न्यायमूर्ति एसपी तवाडे की पीठ ने राव के स्वास्थ्य की स्थिति का आकलन करने के लिये उनका मेडिकल परीक्षण कराने का निर्देश दिया था।
न्यायालय ने कहा था कि वीडियो परीक्षण किया जा सकता है और अगर मेडिकल टीम को लगता है कि वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से मेडिकल जांच नहीं की जा सकती है तो उनकी वास्तविक मेडिकल की जा सकती है।
राव की ओर से आज वरिष्ठ अधिवक्ता इन्दिरा जयसिंह ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि राव की सेहत की स्थिति के आकलन के लिये की गयी जाच पर्याप्त नहीं थी।
उन्होंने कहा, ‘‘वीडियो कांफ्रेंस सुनवाई 15 मिनट के लिये थी। वे इतनी अवधि में यह कैसे निर्धारित कर सकते हैं कि क्या वह ठीक हैं या नहीं? इसमें विलंब उनके लिये उचित नहीं है। मैं सुनवाई के लिये बार बार आ सकती हूं।’’
उन्होंने यह भी कहा कि राव को नानावटी अस्पताल में स्थानांतरित किया जाना चाहिए क्योंकि जेल का अस्पताल ठीक से मेडिकल जांच के लिये सुविधाओं से सुसज्जित नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘‘वह जेल अस्पताल में हैं और वह उनका मेडिकल परीक्षण करने के लिये सुसज्जित नहीं है।
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