सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को राज्य में गैर-आदिवासी लोगों के खिलाफ हिंसा को कम करने के लिए फेसबुक पोस्ट के संबंध में शिलांग टाइम्स के संपादक पेट्रीसिया मुखीम के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को खारिज कर दिया।
मुखिम द्वारा मेघालय उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ जिसमे आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगाने के लिए उसकी याचिका खारिज कर दी पर दायर याचिका मे निर्णय जस्टिस एल नागेश्वर राव और रवींद्र भट की पीठ ने सुनाया
मेघालय में कुछ गैर-आदिवासी लड़कों पर हमले के खिलाफ राज्य द्वारा आपराधिक कार्यवाही कार्रवाई की मांग जो कि मुखीम द्वारा प्रकाशित एक फेसबुक पोस्ट से संबंधित है।
मुकीम के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 153-ए (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 500 (मानहानि की सजा) और 505 (सार्वजनिक उपद्रव के लिए बयान करने वाले बयान) के तहत अपराध का मामला दर्ज किया गया था
वरिष्ठ वकील वृंदा ग्रोवर ने मुकीम के लिए तर्क दिया था कि उस समुदाय की भावनाओं का कोई आघात नहीं था, जिस पर क्रूरता से हमला किया गया हो।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दलील दी गई कि मुकीम को सच बोलने के लिए उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत गारंटी के रूप में उसके मौलिक अधिकार के प्रयोग में अपराध के अपराधियों के खिलाफ कानून के नियम को लागू करने की मांग की जा रही है।
याचिका में आगे कहा गया है कि आईपीसी की धारा 500 और 505 (ग) के गैर-संज्ञेय होने के अपराधों की जांच नहीं की जा सकती है और इस तरह के अभियोजन के खिलाफ वैधानिक बार के मद्देनजर प्राथमिकी दर्ज करने की कार्यवाही की जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड प्रसन्ना एस के माध्यम से दायर की गई थी।
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[BREAKING] Supreme Court quashes FIR against Shillong Times Editor, Patricia Mukhim